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लेखाञ्जलि
भीतर भी तैर सकते थे और उसकी सतहके ऊपर भी। ऊपर तैरते समय वे पास उड़ती हुई चिड़ियोंको लपककर पकड़ लेते और उन्हें निगल जाते थे।
पुराकालके इन भयङ्कर जन्तुओंके, सब मिलाकर, कोई तीस नमूने बनाये और पूर्वोल्लिखित पशु-शालामें रक्खे गये हैं। उनमें कई घड़ियालों, विलक्षण मछलियों और डैनेवाली छिपकलियोंकी भी मूर्तियां हैं। कुछ मूर्तियां जलाशयके जलमें तैरती हुई भी दिखाई गई है।
ऊपर जिन मूर्तियोंका वर्णन किया गया है उनमेंसे अधिकांश मूर्तियां एकसे अधिक संख्यामें तैयार करके अलग भी रख दी गई हैं। कुछ मूर्तियां बड़ी, कुछ छोटी, कुछ म भोले आकारकी हैं। वे सब बेचनेके लिए हैं। जो चाहे खरीद सकता है। प्राणि-विद्या में प्रवीणता प्राप्त करनेके इच्छुकों को इस प्रकारकी मूर्तियाँ देखने और उनके अवयव तथा संगठनका ज्ञान प्राप्त करनेसे बहुत लाभ होता है।
[फरवरी १९२३]