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लेखाञ्जलि


मय होती है। उसमें अङ्ग-प्रत्यङ्ग बिलकुल नहीं होते। अच्छा, यह कोश होता कैसा है? यह एक अत्यन्त स्वल्प थेली सी होती है, उसमें किसी गाढ़े, पर तरल, पदार्थका एक बिन्दु-मात्र भरा रहता है। कभी-कभी इस थैलीका भी पता नहीं लगता; केवल बिन्दुमय पतला पदार्थ ही देख पड़ता है। यह पदार्थ स्वच्छ और वर्णविरहित होता है। न यह बहुत पतला ही होता है और न जमाही हुआ। हाँ, गाढ़ा अवश्य होता है। जीवनी शक्तिका जैसा विकास इस पदार्थ में देख पड़ता है वैसा अन्यत्र नहीं। जान पड़ता है, मानों जीवनका आदि लीलाक्षेत्र यही है। अँगरेजी में इसे प्रोटोप्लाज्म अर्थात् प्राणिजीवनका मूलतत्त्व कहते हैं। इस प्रोटोप्लाज़्म ही से जीवन का विकास होता है। यदि किसी प्रकार प्रोटोप्लाज्म तैयार किया जा सके तो मनुष्यद्वाग प्राणिजीवन की सृष्टि करना शायद सम्भव हो जाय। योरपके विज्ञानवेत्ताओंने आशा की थी कि रासायनिक प्रक्रियाके द्वारा जैसे अनेक जटिल रासायनिक मिश्रण तैयार किये जा सकते हैं वैसेही प्रोटोप्लाज़्म भी तैयार किया जा सकेगा और उसकी सहायतासे मनमाने पदार्थों में जीवनो शक्ति सञ्चारित की जा सकेगी। परन्तु अनवरत श्रम, उद्योग और गवेषणा करनेपर भी उनकी सभी परीक्षायें अब तक व्यर्थ सिद्ध हुई हैं। अतएव उनकी वह आशा अद्यावधि दुराशा ही बनी हुई है।

विज्ञानवेत्ता पहले समझते थे कि अन्यान्य रासायनिक यौगिक पदार्थों की तरह प्रोटोप्लाज़म भी वैसा ही कोई पदार्थ है। परन्तु उनकी यह धारणा निराधार ज्ञात हुई है। वे जान गये हैं कि इस