एव अब यह प्रश्न हो सकता है कि सूर्य किसी ऐसे अनुज्ज्वल तारे के सहर्ष से क्या प्रज्वलित नहीं हो सकता? इसके उत्तर में आधुनिक ज्योतिषी कहते हैं कि यदि किसी समय सूर्यके तापाधिक्य से पृथ्वीका ध्वंस होना सम्भव है तो किसी अनुज्ज्वल तारेके सङ्घर्ष हीसे यह बात हो सकती है। वृहस्पति, शनि इत्यादि ग्रह अपने छोटे-छोटे उपग्रहों को लेकर जैसे आकाशमें दौरा लगाते हैं, वैसेही सूर्य भी अपने समस्त सौर-परिवारके साथ आकाशकी एक ओर दौड़ा करता है। सूर्यकी इस गतिका पता लगनेके बाद कुछ दिनों तक विद्वानोंमें इस बातपर तर्क-वितर्क होता रहा था कि सूर्यको गति किस ओर है। कुछ ही समय पूर्व यह तर्क-द्वन्द्व समाप्त हुआ है। सब विद्वानों ने एकमत होकर मान लिया है कि सौरजगत् प्रति सेकण्ड दस मीलकी चालसे अभिजित् नक्षत्रकी ओर दौड़ रहा है। इसलिए यदि सूर्य और अभिजित् नक्षत्रके बीचमें कोई अनुज्ज्वल तारा आ जायगा तो दोनों के संघर्षसे एक विकट अग्निकाण्ड उपस्थित होगा, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं।
अध्यापक गोर (Gore) एक विख्यात अँगरेज़ ज्योतिषी हैं। यह सोचकर कि भविष्यत् में सूर्य के साथ किसी अनुज्ज्वल तारे का संघर्ष होना बिलकुल सम्भव नहीं, उन्होंने इसके सम्बन्धमें कुछ
दिन हुए गणना करना प्रारम्भ किया था। उसका फल प्रकाशित हो गया है। सूर्य और अभिजित् नक्षत्र के बीच में किसी स्थानपर सूर्य हीकी तरह बृहत् और गतिशील एक अनुज्ज्वल नक्षत्र का
अस्तित्व मानकर गणना प्रारम्भ की गई थी। हिसाब लगानेपर