पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

कुछ मिल ही जायगा और जिन लोगोंकी रुचि अद्भुत बातोंको जानने की ओर रहती है और जिन्हें विज्ञानसे प्रेम है उनके लिए तो इस पुस्तकमें बहुत-कुछ सामान है। आशा है कि ऐसी सर्वजन प्रिय पुस्तक का आदर हिन्दी-संसार समुचित रूप में करेगा।

हमारा बहुत समय से विचार था कि जहां हिन्दीके अधिकांश प्रतिष्ठित विद्वानों की रचनाओं का गुम्फन इस माला में हो चुका है वहां द्विवेदी जी जैसे सर्वमान्य हिन्दी-लेखककी रचना का इसमें समावेश न होना खटकने की-सी बात है। आज हमें उनकी रचनाको प्रकाशित कर इस त्रुटिको दूर करनेका सुअवसर प्राप्त हुआ है। आशा है पाठकगण इसे अपनाकर हमें इसी प्रकारकी अन्य रचनाएं भी प्रकाशित करनेके लिए उत्साहित करेंगे।

विनीत--

प्रकाशक