मालूम हुआ कि जब सूर्य और इस कल्पित नक्षत्र का फासला एक अरब पचास करोड़ मील रह जायगा तब इस नक्षत्र के दर्शन हम लोगों को होंगे। अर्थात् उस समय वह सूर्यके प्रकाशसे प्रकाशित हो जायगा और हम लोगों को नवम श्रेणी के तारे के समान दिखाई पड़ेगा। जब दो गतिशील पदार्थ एक दूसरे के निकट होने लगते हैं तब माध्याकर्षण के नियमानुसार उनकी चाल अधिक तेज़ हो जाती है। इस हिसाबसे सूर्य और उस कल्पित नक्षत्र के बीचकी दूरी एक अरब
पचास करोड़ मील में से एक अरब चवालीस करोड़ मील तय करने में, दोनोंको सिर्फ बारह वर्ष लगेंगे। अर्थात बारह वर्ष बाद दोनों के बीच का फासला सिर्फ छः करोड़ मील रह जायगा। उस समय यह कल्पित नक्षत्र पंचम श्रेणी के नक्षत्र की तरह दिखाई देगा। पंचम श्रेणीके नक्षत्र बहुत उज्ज्वल नहीं होते। इसलिए सूर्य के इतना निकट आनेपर भी सर्वसाधारण भी उसे दूरबीन की सहायताके बिना न देख सकेंगे। पर इसके बाद दोनोंका फासला इतनी जल्दी कम होने लगेगा कि बादके चार वर्षों में बृहस्पति की कक्षा के निकट आकर यह नक्षत्र दो शुक्रों और चार बृहस्पतियों के समान उज्ज्वल हो जायगा। उस समय इसे द्वितीय चन्द्रमाकी तरह आकाशमें उदित देखकर पृथ्वीवासी अवश्य ही विस्मित होंगे।
इसके बाद सौरजगत् कितने वेगसे उस सहायक नक्षत्र के निकट होने लगेगा, इसका हिसाब भी गोर साहबने लगाया है। आप कहते हैं कि ५१ दिनमें पृथ्वी की कक्षा पार करके यह नक्षत्र इतने प्रबल वेगसे सूर्य को धक्का देगा कि सौरजगत् क्षणभर में ध्वंस हो जायेगा।