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सौर जगत्‌की उत्पत्ति

नीहारिका-खण्ड अधिकाधिक शक्तिशाली होने लगे। बिना जड़का आधार पाये शक्ति प्रकट नहीं होती; इसीसे जड़को शक्तिका वाहन या आधार कहते हैं। इसके सिवा जहाँपर जड़ पदार्थ जितना ही अधिक है वहाँपर शक्तिके प्रकटीकरणका सुभीता भी उतना ही अधिक है। आकाशमें छोटे छोटे मेघखण्डोंके परस्पर सम्मेलनसे एक बड़ी भारी घटाकी उत्पत्ति होते देखा जाता है। वैसी ही घटना नीहारिका-खण्डोंमें भी हुई। नीहारिकाओंका आकार जितना ही अधिक बढ़ने लगा, गति और आसक्ति भी उनके अणुओंमें उतनी ही अधिक प्रबल होने लगी। धीरे-धीरे वे नीहारिका-खण्ड घनीभूत होकर अन्तको एक विशाल पदार्थखण्डके रूपमें परिणत होगये और आकाशमें बड़े वेगसे चक्कर काटने लगे।

धीरे-धीरे परमाणुओंकी कुण्डलाकार गतिमें परिवर्तन हो गया। समग्र नीहारिका-निचयकी चाल चर्ख़ीकी चालके सदृश प्रकट हुई। अणुओंमें जैसे-जैसे आसक्ति बढ़ती गई वैसे-ही-वैसे वे अधिकसे अधिक परस्पर पास आते गये। इसके अवश्यम्भावी फलके कारण नीहारिका-समूहका घेरा सङ्कुचित होने लगा। इस सिमटनेका परिणाम यह हुआ कि वह नीहारिका-चक्र घना होगया। इस सिमटनेका परिणाम यह हुआ कि वह नीहारिका चक्र घना होगया। फिर वह नीहारिका कुहासेकी अवस्थासे घनी भाफके रूपमें परिणत होगई। तदनन्तर उसने तरल, फिर कीचड़की तरह और अन्तमें कठिन पदार्थका आकार धारण किया। यही जड़-जगत्‌की उत्पत्ति या रचनाका क्रम है।