घने होनेकी अवस्थामें क्रमशः गाढ़ी भाफ, तरल पदार्थ, कीचड़ आदिकी अवस्थाओंको पार करके कठिन और ठोस अवस्थाओंको पहुँचे हैं। जो गोलक जितना ही कठिन होता जाता है, उसके भीतर जो अणु हैं उनकी पारस्परिक रगड़से उसकी आणविक अर्थात् कुण्डलाकार गतिका ह्रास भी उतना ही होता जाता है। विज्ञान हमको बतलाता है कि गर्मी और प्रकाश इसी आणविक गतिके फल हैं। इस कारण उक्त पदार्थ-खण्ड जितने ही घने होते जाते हैं उतनी ही गर्मी, वे अपनी आणविक गतिकी रगड़से, उत्पन्न करते हैं। जब वे कठिन अर्थात् ठोस पदार्थका रूप धीरे-धीरे धारण करते हैं तब गर्मी उत्पन्न करने और प्रकाश फैलानेकी उनकी शक्ति चली जाती है।
पृथ्वीपर रहनेवाले हमलोग जिस सूर्यके चारों तरफ़ चक्कर लगा रहे हैं उसके सदृश और भी कितने सूर्य इस ब्रह्माण्डमें हैं, यह कोई नहीं बता सकता। यह भी कोई निश्चयके साथ नहीं कह सकता कि सूर्य किसी अन्य महा-सूर्यका खण्ड है या नहीं। पहले जो कुछ कहा जा चुका है उससे यह प्रमाणित होता है कि जो सूर्य्य किसी मूल नीहारिका-खण्डके सङ्कोचसे उत्पन्न होता है उसके लिए उस जगहसे दूसरी जगह जाना सम्भव नहीं। परन्तु गणित-शास्त्रके आधारपर यह सिद्धान्त स्थिर हुआ है कि हमारा यह सूर्य्य, शून्य आकाश-पथमें, किसी निर्द्दिष्ट स्थानकी ओर जा रहा है। अतएव जान पड़ता है कि हमारा सूर्य किसी मूल नीहारिकाके सङ्कोचसे नहीं उत्पन्न हुआ; किन्तु किसी महा-सूर्यके सङ्कोच और चक्राकार गतिके कारण, उससे च्युत होकर, उत्पन्न हुआ है। सौर जगत्के सब ग्रह