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सौर जगत्‌की उत्पत्ति

जैसे धीरे-धीरे जमते हुए कठिन अवस्थाको प्राप्त होते जाते हैं वैसे ही हमारा यह सूर्य भी, जमते-जमते, भविष्यत्‌में कठिन पदार्थ-खण्ड बन जायगा। उस समय उसका सारा तेज नष्ट हो जायगा। वह एक अन्धकारमय गर्तके सदृश रह जायगा। अनुमान तो ऐसा ही किया जाता है। पर यह घटना कब होगी, इसका पता कोई भी शास्त्र—कोई भी विज्ञान—बतानेमें असमर्थ है।

सौर जगत्‌में कई ग्रह एकदमही बुझकर अन्धकारमय हो गये हैं—जैसे बुध और शुक्र। कुछ ग्रहोंका आवरण-भाग प्रकाशरहित हो जानेपर, उनका भीतरी भाग अब भी गर्म है—जैसे पृथ्वी और मङ्गलका। कोई-कोई ग्रह इस समय भी कुछ-ही-कुछ प्रकाश फैलानेकी शक्ति रखते हैं—जैसे बृहस्पति। इन ग्रहोंके रूप और घटन आदिकी आलोचनासे सौर जगत्‌की क्रमोत्पत्तिका नियम बहुत-कुछ जाना जा सकता है। सूर्य अमर नहीं। उसका विनाश न होनेपर भी, निर्वाणको प्राप्त होना सम्भव है। अतएव यह देखना चाहिये कि सूर्यके एक बार बुझ जानेपर फिर भी उसके दीप्तिमान होने की—जल उठनेकी—सम्भावना है या नहीं।

कई वर्ष हुए, आकाशके एक किनारे एकाएक एक अत्यन्त उज्ज्वल तारका प्रकट हो गई थी। बहुत समयतक दूरबीनके द्वारा उसकी देख-भाल करनेके बाद मालूम हुआ कि उसकी तेज़ रोशनी, दिन-पर-दिन कम होती जाती है। क्रमशः वह रोशनी इतनी कम हो गई जितनी कि एक बहुत मामूली तारेकी होती है। पहले अवलोकनके