आधारपर यह अनुमान किया जाता था कि कई एक तारकाएं मिलकर यह एक बड़ी तारका निर्म्मित हुई है। पर ज्यों-ज्यों दिन बीतने लगे त्यों-त्यों देखा गया कि उसकी चमक धीरे-धीरे कम होती जाती है। अन्तको उसने एक साधारण और स्थिर नक्षत्रका रूप धारण कर लिया। कुछ समयसे इस तारकामें कोई विलक्षणता नहीं देखी जाती। किसी अग्निकुण्डमें लकड़ी या कोयला डालकर उसमें आग लगा देनेसे जैसे उस काष्ठ या कोयलेका समूह पहले तेजीसे जल उठता है और फिर धीरे-धीरे उसकी तेज़ी कम होती जाती है—वह स्थिर भावसे जलता रहता है—वही ढङ्ग इस नवीन तारकामें देखा जाता है।
कोई-कोई ज्योतिषी समझते हैं कि आकाशमें जिस जगहपर उक्त नवीन ताराका आविर्भाव हुआ है उस जगह किसी उल्का समूहने फिरतें फिरते एक उल्काशयकी सृष्टि की थी। कोई बुझा हुआ अपरिचित सूर्य, अपनी कक्षामें चलते-चलते, उस उल्काशयमें जा गिरा। वहाँ कितनी ही उल्काओंकी रगड़से उसकी गति रुक गई और वह सहसा जल उठा। वायुके संघर्षसे उल्काओंका जल उठना प्रायः देखा ही जाता है। अतएव किसी उल्का-समुदायकी रगड़से किसी अन्ध-सूर्य्यका जल उठना कुछ विचित्र या असम्भव बात नहीं। इसके सिवा उस सूर्य्यकी टक्करसे उल्काशयके अन्तर्गत उल्का-समूहका जल उठना भी कोई आश्चर्यकी बात नहीं। इसके साथ ही यह अनुमान भी स्वाभाविक है कि पृथ्वीके पास उल्काके आनेपर जैसे वह पृथ्वीकी ओर खिंचकर पृथ्वीतलपर उल्कापातकी घटनाका कारण होती है वैसे ही उक्त अन्धसूर्य्य, उल्काशयमें गिरकर, उसकी उल्काराशिको अपनी तरफ़ खींच-