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पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/७९

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गौतम बुद्धका समय

उदासीन-से थे। परन्तु कुछ समयसे हिन्दी-भाषा-भाषी जन-समुदाय भी इस ओर कुछ-कुछ आकृष्ट हुआ है। फल यह हुआ है कि बुद्धदेव और बौद्ध-धर्म्म-विषयक कुछ पुस्तकें हिन्दीमें भी प्रकाशित हो गयी हैं। तथापि जिस महात्माकी महत्ता इतनी महीयसी है और जिसके उपदेशोंका प्रभाव सारे संसारमें इतनी अधिकतासे व्याप्त हो रहा है उसके आविर्भाव-काल—अर्थात् जन्म और निर्माण के विषयमें विद्वानोंमें बहुत मत-भेद हैं। कोई कुछ कहता है, कोई कुछ।

कुछ समय हुआ, मदरासके बी॰ गोपाल आइयर, बी॰ ए॰, बी॰ एल ने इंडियन ऐंटिक्केरी नामक अंगरेज़ीके एक मासिक पत्रमें इस विषयपर एक गवेषणापूर्ण लेख लिखा था। उसमें उन्होंने बुद्धके जन्म और निर्वाणका प्रामाणिक समय निश्चित करनेकी अच्छी चेष्टा की है। उन्हींके कथनका सारांश यहाँपर दिया जाता है।

पाठक कहेंगे कि हम बहुधा दूसरोंहीके उच्छिष्टसे अपने लेखोंकी कलेवर-पूर्ति किया करते हैं। उनका यह उलाहना किसी हदतक ठीक माना जा सकता है। परन्तु, निवेदन यह है कि हिन्दी-भाषाके साहित्यके जो उन्नायक हिन्दी भाषाहीकी पुस्तकोंकी टीकाओं और भाष्योंको मौलिक ग्रन्थ मानकर टीकाकारोंको बड़े-बड़े इनाम तक दे डालते हैं वही यदि ऐसी बात कहें तो उनका यह उलाहना उन्हें तो शोभा दे नहीं सकता। हमारी राय तो यह है कि बात चाहे जिस देशवासी या जिस भाषा-भाषीकी कही हो, यदि वह अपनी भाषाके लिए नई है तो उसका उद्धरण और प्रकाशन सर्वथा उचित ही समझा जाने योग्य है। हमें तो, इस विषयमें राजा भोजकी यह उक्ति बहुत