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लेखाञ्जलि

ही ठीक जँचती है। हम तो हृदयसे इसके कायल हैं। चम्पू-रामायणमें उन्होंने लिखा है—

वाल्मीकिगीतरघुपुङ्गवकीर्तिलेशै-
स्तृप्तिं करोमि कथमप्यधुना बुधानाम्
गङ्गाजलैर्भुवि भगीरथयत्नलब्धैः
किं तर्पणं न विदधाति जनः पित्दृणाम्

अर्थात्—आदि कवि वाल्मीकि मुनिने रघुपुङ्गव रामचन्द्रकी कीर्तिका जो गान किया है उसी गानके कुछ थोड़ेसे लेश लेकर मैं सहृदय विद्वानोंकी तृप्ति करनेका उपक्रम कर रहा हूँ। भगीरथने महान् प्रयत्न करके गङ्गाजीका अवतरण पृथ्वीपर कर दिया तो उसपर उनका इजारा थोड़े ही हो गया। क्या उसी गङ्गाके जलसे लोग पितरोंका तर्पण नहीं करते?

अस्तु। अब बुद्ध भगवान्‌के आविर्भाव-कालके सम्बन्धकी बातें सुननेकी कृपा कीजिये। उत्तरी देशोंके बौद्ध-ग्रन्थोंमें बुद्धका निर्वाणसमय ईसाके २४२२ से लेकर ५४६ वर्ष पूर्व तक बतलाया गया है। परन्तु आईने-अकबरीमें अबुलफ़ज्लने लिखा है कि यह घटना सन् ईसवीके १२४६ वर्ष पूर्व हुई थी। एक तामील ग्रन्थमें इस घटनाका समय कलि-संवत् १६१६ दिया हुआ है। पर ब्रह्मदेश, श्याम और लङ्काके बौद्धोंका कथन है कि भगवान बुद्धदेवका निर्व्वाण सन् ईसवीके ५४३ वर्ष पहले हुआ था। और तो और, पश्चिमी विद्वान् भी इस विषयमें एकमत नहीं। वे लोग निर्व्वाणका समय ५४४ से ३७० वर्ष ईसाके पहले बताते हैं।