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गौतम बुद्धका समय

तक साधारण शिष्यके सदृश रहे। मूल लेखमें बत्तीसकी जगह "अढ़ितीसानि" शब्द है। कोई-कोई विद्वान् इसका अर्थ ढाई (२ १/२) करते हैं। परन्तु यह अर्थ नितान्त भ्रममूलक है; क्योंकि यह स्पष्ट है कि प्राकृतमें 'अढ़ि' का अर्थ ढाई और तीसानिका अर्थ तीस है। इस कारण 'अद्वितीसानि' का अर्थ साढ़े बत्तीस है, ढाई (२ १/२) नहीं।

इस शिलालेखसे प्रकट है कि अशोक कुछ ऊपर अड़तीस (३२ १/२+६=३८ १/२) वर्ष तक बौद्ध रहकर बुद्धके निर्व्वाणके बाद २५६ वें वर्ष मृत्युको प्राप्त हुए। अथवा यों कहिये कि वे बुद्धके निर्व्वाणके २१८ वें (२५६-३८=२१८) वर्षमें बौद्ध हुए थे। लङ्काके बौद्धग्रन्थोंसे भी यही बात मालूम होती है। उनमें लिखा है कि अशोक बुद्धके निर्व्वाणके बाद २१८ वें वर्ष में बौद्ध हुए थे और उसके कोई सैंतीस-अड़तीस वर्ष बाद (२५६ निर्व्वाण-संवत्‌में) मरे थे। सुदर्शनविभाष नामक ग्रन्थसे भी इस मतकी पुष्टि होती है। इस ग्रन्थका अनुवाद चीनी भाषामें, ४६९ ईसवीमें, हुआ था। उसमें भी लिखा है कि अशोक २१८ निर्वाण-संवत्‌में बौद्ध हुए थे और २५६ निर्व्वाण-संवत्‌में मरे थे।

ऊपर यह लिखा जा चुका है कि अशोककी मृत्यु २३१ ई॰ पू॰ में हुई थी। इसलिए यह सिद्ध है कि बुद्धका निर्व्वाण २३१+२५६=४८७ ईसवी पूर्वमें हुआ था। बौद्ध-ग्रन्थोंसे मालूम होता है कि बुद्ध भगवान् ८० वर्ष तक जीवित रहे थे। इसो लिए उनका जन्मसंवत् ५६७ ईसवी पूर्वमें माना जा सकता है।