पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१०१

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से हैहयों का विग्रह हुआ । तुर्वशु का वंश उत्तरी बिहार में राज्य करने लगा । इस वंश में प्रसिद्ध यज्ञकर्ता मरुत् चक्रवर्ती हुआ। इन्होंने दीर्घतमा ऋषि के चाचा संवर्त से यज्ञ कराया । इन्हें ही हिमालय में भारी खजाना मिला । मरुत् से कुछ ही पूर्व मान्धाता ने पौरव कुल को राज्यच्युत किया था । अब मरुत् ने अपना तुर्वशु वंश राजकुमार दुष्यन्त को गोद लेकर पौरव कुल में मिला दिया । इस वंश की शाखाएं पाण्ड्य , चोल और केरल - दक्षिण में फैल गईं । द्रुह्यु के वंशधर अंगार को आगे मान्धाता ने पराजित किया । इससे यह वंश और पीछे हटकर गान्धार तक पहुंचा। पीछे इन्होंने मान्धाता के पुत्र पुरुकुत्स को सपरिवार बन्दी बनाया । बन्दी - अवस्था में ही त्रसदस्यु का जन्म हुआ । समय आने पर इसी त्रसदस्यु ने द्रुह्यओं को चम्बल के किनारे करारी हार दी । इसके बाद यह वंश और भी पश्चिम की ओर हटकर म्लेच्छ देश में चला गया । कुछ द्रुह्यु वंशी महाभारत में आ बसे , जहां वे भोज कहलाए । अनु को गंगा - यमुना के द्वाबे का उत्तरी भाग मिला था । इस वंश का राजा महामनस पंजाब की ओर बढ़ा । वह चक्रवर्ती तथा सात समुद्रों का स्वामी प्रिसद्ध हुआ । इसने सिन्धु , सौवीर , कैकेय , मद्र, वाह्लीक , शिव और अम्बष्ठ राज्यों की स्थापना की । इस वंश के राजकुमार तितिक्षु ने पूर्व की ओर आकर अंग राज्य वर्तमान भागलपुर के निकट स्थापित किया । इसी वंश के राजा बलि की रानी सुदेष्णा को अन्धे वेदर्षि दीर्घतमा ने वीर्यदान दे पांच पुत्र उत्पन्न किए जो क्रमश: अंग , बंग, कलिंग, सुम्ब और पौण्ड्र राज्यों के संस्थापक हुए । इसी वंश के प्रिसद्ध नरेश लोमपाद दशरथ के मित्र थे। दीर्घतमा , वीतिहव्य , जमदग्नि , राम, परशुराम, शिवि , यदु, द्रुह्यु, अनु और तुर्वशु नाम वेद में बहुत विख्यात हैं । गान्धार में रावलपिण्डी और पेशावर के जिले लगते थे। उसमें तक्षशिला और पुष्करावती प्रमुख थे । आजकल इसे चारसदा कहते हैं । कैकेय लोग गान्धार और व्यास के मध्यवर्ती क्षेत्र में थे। उशीनर , कैकेय और मद्रक आनव ही थे। यह वंश देर तक मध्य पंजाब में राज्य करता रहा । उत्तर मद्र हिमालय के उस पार था । दक्षिण मद्र का राज्य स्यालकोट के निकट था । इन राज्यों की पांच श्रेणियां थीं - साम्राज्य , भौज्य , स्वराज्य , वैराज्य और राज्य। उन दिनों राजाओं की रानियों की भी चार श्रेणियां थीं स्वराज्य , महिषी , परिवृत्ता , बावाता , पालागली -मुख्य रानी महिषी , प्रेमहीना परिवत्ता , मुख्य प्रेमिका बावाता और अन्तिम मन्त्री की कन्या पालागली। महान सम्राट का ऐन्द्राभिषेक होता था । इन बड़े -बड़े राजवंशों के अतिरिक्त उस काल में गान्धार , मूजवन्त , मत्स्य तृत्सु , भरत , भृगु, उशीनर, चेदि , क्रिवि , पांचाल , कुरु , सृज्जया, धर, पारावत आदि वंशों की अनेक छोटी - बड़ी गद्दियां भरतखण्ड में स्थापित थीं ।