43. रुद्र यम की पत्नी वसु से आठ वसु उत्पन्न हुए, जिनमें सबसे ज्येष्ठ धर थे। धर के पुत्र रुद्र थे। रुद्र के ग्यारह कुल चले । इन ग्यारह कुलों के प्रवर्तक थे - 1. अज एकपाद्, 2. अहिर्बध्ध्य , 3. विरूपाक्ष, 4. त्वष्टा, 5. वीरभद्र, 6. भैरव , 7. हरमहेश्वर (शिव ), 8. त्र्यम्बक , 9 . सावित्र ( कपाली), 10 . शम्भू और 11 . शर्व (पिनाकी )। रुद्र के चार स्थान प्रसिद्ध हैं । प्रथम मूल स्थान मूजवान पर्वत हेमकूट (हिन्दू- कुश ) का प्रत्यन्त पर्वत , जो पश्चिम कोहसुलेमान से बहुत उत्तर सफेद कोह (श्वेत गिरि - धवल ) से भी उत्तर में है। यहां ही सोम होता था । इसी के पूर्व की ओर क्रौंचगिरि है, जिसे अब कराकुरम कहते हैं । इसी का विदारण कुमार कार्तिकेय ने किया था । उमावन शरवन इसी स्थान के आसपास है। यहां के आगे की वायु बहुत प्रचण्ड है। इसी से रुद्र को तूफानों का देवता कहा है । इस प्रदेश में मूजवन , महावृष ,वाह्लीक तथा मारुत् जातियां रहती थीं , जो आर्य न थीं । परन्तु मारुत् लोग देवराट् इन्द्र के सहायक हुए। दूसरा भद्रवट , कैलाश के पूर्व की ओर , लौहित्यगिरि के ऊपर है । उसके नीचे ब्रह्मपुत्र नदी बहती है । तीसरा कैलास हिमाचल प्रदेश का मानसरोवर के निकट का स्थान । __ पर्शिया के एक प्रान्त में शंकरा ’ जाति अब भी निवास करती है । पुराणों में रुद्र को मरुतों का पूर्वज माना गया है । रुद्र को वृषभ के समान शक्तिमान् तथा दुर्धर्ष तेजवाला बताया गया है । यह जरारहित , स्थिर- यौवन तथा सर्वाधिपति माना गया है । ऋग्वेद से यह भी पता लगता है कि उसके होंठ सुन्दर थे, रंग बादामी था , वह सिर पर बड़े- बड़े बाल रखता था , शरीर उसका सूर्य के समान देदीप्यमान था , वह प्रचण्ड धनुर्धारी योद्धा था । असीरिया के फ्रीजिया देश में सेवा या सेवाजियः नाम के देवता की उपासना होती है। वहां तथा मिस्र में भी सेवा देवता के साथ सर्प का सम्बन्ध जोड़ा गया है । अमेरिका के पेरु प्रदेश में सिवु देवता पूजा जाता है। यह सब शिव की ही पूजा है । पैलेस्टाइन देवों का पाल नामक धाम था , जो दैत्यों ने छीन लिया था , उसी के उद्धार के लिए शिव ने त्रैपुर युद्ध किया था । डेड - सी - मृत्यु सागर ही वह स्थान है जहां त्रैपुर के मृत वीरों का जल- प्रवाह किया गया था । मसीह से पूर्व 2189 में मिस्र के महिदेव कपोत थे, जो मिश्राइज्म के नेता भी थे। इन्हें वहां के फरोहा ने देश -निकाला दिया था । तब शिश्तान के राजा शिवि ने उन्हें आश्रय दिया था । इस प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना को पुराणों की इस विख्यात आख्यायिका से मिलाइए कि शिवि ने कबूतर के बदले अपना मांस दिया । कपोत जाति को कबूतर बना दिया गया । यह शिवि राजा भी रुद्रों के वंश में थे। शेष रुद्रों का विस्तार सारी सुर और असुर - भूमि में हुआ और वे सभी सुरों और असुरों में समान भाव से पूजित हुए ।
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