पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१६३

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दिया , बहुतों ने पशु- बलि दी । बहुतों ने अपनी सन्तान की बलि दी । राजदर्शन के उपलक्ष्य में दूर से आए हुए बहुत जनों ने अपना ही कण्ठ काटकर आत्मबलि दी । ये सब बलिदान बही - खातों में लिखे गए और बाद में दानवेन्द्र की ओर से जिसकी भेंट , बलि जितनी मूल्यवान् प्रमाणित हुई उतना ही उसे राजप्रसाद दिया गया । स्वर्ण, पद, भू - सम्पत्ति , पशुधन , कुमारिकाएं , आदि- आदि । ___ अब कुमारिकाओं का नीलाम आरम्भ हुआ। सबसे पहले सर्वश्रेष्ठ, सर्वाधिक सुन्दरी कन्याएं दानवेन्द्र और याजकों के लिए छांटकर उनके निर्धारित मूल्य का स्वर्ण नीलाम करने वाले अध्यक्ष के पास जमा कर दिया गया । इसके बाद बची कुमारिकाओं में से सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी कन्या का ऊंची - से -ऊंची बोली बोलने वाले को स्वर्ण लेकर नीलाम कर दिया गया । उसके बाद एक सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी, फिर साधारण कन्याएं बारी -बारी से नीलाम कर दी गईं । अन्त में कुरूपाओं और विकलांगनाओं की बारी आई । उनका कौन ग्राहक हो सकता था । अतः उन्हें धन देकर बेचा गया । अभिप्राय यह कि गरीब सुन्दर पुरुषों को स्वर्ण देकर उन कन्याओं को रखने के लिए राजी किया । इस प्रकार वे सब कन्याएं उसी दिन बिक गईं । वे सभी एक प्रकार से विवाहिता हो गईं । सुन्दरी कन्याओं की बिक्री से मिले स्वर्ण का एक अंश असुन्दरी और विकलांग कन्याओं के खरीदारों को दे दिया गया , जिससे वे उनका भली भांति पोषण कर सकें । परन्तु यह खरीद-बिक्री साधारण नहीं होती थी । इसके लिए देव सान्निध्य में प्रतिज्ञा करनी पड़ती थी , जिसका न्यायाधीश बड़ी कड़ाई से पालन कराते थे । इस सम्बन्ध में अपील भी की जाती थी । परस्पर की शर्ते शपथ और गवाहियों द्वारा तय होती थीं । कोई भी पुरुष इस प्रकार कन्या का पति बनकर उसके साथ अन्यायाचरण नहीं कर सकता था । उसे कन्या का समुचित भरण - पोषण करना पड़ता था । दानवों और असरों के राज्यशासन में उनके कानुन तीन भागों में विभक्त थे : एक धनसम्पन्नों का , दूसरा धनहीनों का , तीसरा दासों का । दास अपनी निज की सम्पत्ति रख सकते थे। वे अपने दास भी खरीद सकते थे। दासों के स्वामी को दास का भी सभी खर्च वहन करना पड़ता था । दास के लिए कन्या भी खरीद लानी पड़ती थी । दास - पुत्र भी दास होते थे, परन्तु यदि दास का संबंध किसी अदास - स्त्री से होने पर गर्भ रह जाता था तो वह बालक दास नहीं माना जाता था । दास रुपए देकर मुक्त भी हो सकते थे। नीलाम में अदास कुमारिका खरीद सकते थे। दासों की बांहों पर उनके स्वामियों के नाम खोद दिए जाते थे। राज- कर कड़ाई से लिया जाता था ; जो नहीं दे सकता था , वह अपने परिवार के साथ बेच दिया जाता था ।