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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१६४

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49. श्रेय और प्रेय विप्रचित्त दानव की कन्या मालिनी भी नीलाम होने को आई थी । दानव - कन्या का रंग तपाए हुए स्वर्ण के समान और मुख शतदल कमल के समान था । कन्या की देहश्री उषा के आलोक की भांति मनोरम थी । उसके सुचिक्कण पद - चुम्बी केश भौंरों के समान काले थे । नेत्रों की उज्ज्वल ज्योति शुक्र नक्षत्र के समान थी और उसका मृदु हास शारदीय पूर्णिमा की अमल चांदनी - सा निर्मल था । उसका कण्ठ - स्वर वीणाविनिन्दित था , श्वास में पारिजात कुसुम का सौरभ था । वह षोडशी बाला वसन्त में खिले हुए फूलों से लदी- फदी एक लतिका के समान सुषमा रखती थी । आसुरायण रैक्व असुर-याजक थे, वेदर्षि थे। श्रेय और प्रेय के रहस्य के ज्ञाता प्रसिद्ध थे। उनकी बड़ी भू - सम्पत्ति थी । विशाल हर्म्य, भूमि , हाथी , घोड़े, स्वर्ण, रत्न और बहुत - सी सुन्दरी , रूप - यौवन - सम्पन्न बालाएं उनके पास थीं । विविध भोगों का ऋषिवर आनन्द से उपभोग करते और दानवों, असुरों की सब सेवा - अर्चना ग्रहण करते थे। रैक्व बहुत बूढ़े और कुरूप थे। दांत उनके सबके सब सड़ - गल गए थे। शरीर का मांस लटक गया था । नेत्रों की ज्योति भी धुंधली पड़ गई थी , परन्तु काम - भोग में उनकी बड़ी रुचि थी । वे बहुत बढ़िया कौशेय के वस्त्र पहनते , स्वर्ण - आसन पर बैठते , उत्तम सुवासित सोमपान करते तथा तरुणी बालाओं का सान्निध्य - सुख भोगते थे। नए -नए यौवन उन्हें बहुत पसन्द थे । कुमारिकाओं की जो नीलामी असुरों के माया नगर में वर्ष -नक्षत्र पर होती थी , उसमें याजकों तथा राजाओं के लिए सबसे प्रथम अपनी पसन्द की कुमारिकाएं चुनकर खरीद लेने की छूट होती थी । उनके चुन लिए जाने के बाद बची हुई कुमारिकाओं का सार्वजनिक नीलाम होता था । परन्तु एक नियम का पालन तो सर्वत्र ही होता था कि यदि कुमारिका खरीदार को स्वयं नापसन्द करे तो नीलाम रद्द हो जाता था । याजकों और राजाओं का भी कुमारिका की स्वीकृति के बिना नीलाम मंजूर नहीं होता था । आसरायण रैक्व ने मालिनी को अपने लिए चुन लिया और नियत स्वर्ण- राशि नीलाम के अफसर के पास जमा कर दी , परन्तु कुरूप और बूढ़े रैक्व को मालिनी ने अस्वीकार कर दिया । फलतः उनकी बोली रद्द हो गई। इस पर आसुरायण रैक्व असंतुष्ट होकर चले गए। कोई अन्य कुमारिका उन्होंने नहीं खरीदी । इसी मालिनी को रैक्व से द्विगुण स्वर्ण देकर एक दानव राजा जानश्रुति ने खरीद लिया । जानश्रुति सुन्दर और तरुण था । उसकी बहुत भारी भू सम्पत्ति थी । मालिनी ने मुस्कराकर उसके हाथ बिकना स्वीकार कर उसे उपकृत कर दिया । कालान्तर में जानश्रुति की इच्छा हुई कि श्रेय और प्रेय के रहस्य को जाने । उन दिनों असुरों और देवों को इस प्रकार के रहस्यों को जानने की बड़ी इच्छा रहती थी , परन्तु ये ऋषिगण उसे सदा एक गोपनीय रहस्य बनाए रहते थे। उसे बड़ी टाल - टूल और भारी