पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१६५

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साँचा:सहीदक्षिणा लेकर बड़ी अटपटी भाषा में बताया करते थे। वह राजा रैक्व के पास छः सौ गायें और बहुत - सा स्वर्ण, मणि , रथ, कौशेय और धन लेकर गया और उन आसुरायण रैक्व से याचना की कि वह यह भेंट स्वीकार करें और श्रेय और प्रेय का भेद उसे बता दें । पर रैक्व उस कुमारिका को भूले न थे। उसे राजा ने दुगुनी डाक देकर खरीद लिया था , इस कारण वे इस राजा से जले - भुने बैठे थे । उन्होंने उसकी मूल्यवान भेंट की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखा और क्रुद्ध होकर कहा - “ अरे शूद्र, जा भाग । यह हमको नहीं चाहिए। " राजा निराश होकर लौट गया और ऋषि का अभिप्राय जान दुबारा एक हजार गाय , बहुत - सा धन और उस गांव का पट्टा , जिसमें ऋषि रहते थे तथा वही कुमारिका मालिनी लेकर ऋषि के पास फिर पहुंचा और प्रणाम कर कहा - “ हे ऋषि, यह भेंट आपके लिए है । मुझे श्रेय और प्रेय का भेद बताइए । " कुमारिका का मुंह देखते ही बूढ़े ऋषि खुशी से खिल गए । उन्होंने कहा - “ अरे शूद्र, आ बैठ , इस सुन्दर मुख -कमल की बदौलत सुन , श्रेय और प्रेय दो मार्ग हैं । श्रेय को विद्या और प्रेय को अविद्या कहते हैं । दोनों परस्पर -विरुद्ध हैं । श्रेय से निवृत्ति और निवृत्ति से मोक्ष होता है तथा प्रेय से प्रवृत्ति और प्रवृत्ति से जन्म - मरण होता है। धन , ऐश्वर्य आदि लौकिक सुखों का समावेश प्रेय में है और इन सबका त्याग श्रेय है । जा भाग , यह रहस्य इतना ही यथेष्ट है। "