पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१६९

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51. राजकुमार का दूषण दिग्दिगन्त में घूम -फिरकर रावण ने पृथ्वी की राजनीतिक और सामरिक सत्ताओं को अपने मन में तोल लिया। कहां कैसे किससे लोहा लिया जाएगा, इसकी योजना उसने मन- ही - मन बना ली । फिर उसने दोनों भारतीय सैनिक - सन्निवेशों - दण्डकारण्य और नैमिषारण्य का सूक्ष्म निरीक्षण किया । दण्डकारण्य के रक्षपाल खर - दूषण और नैमिषारण्य के रक्षपाल मारीच और सुबाहु को आवश्यक गुप्त आदेश दिए। फिर वह खूब सावधानी से लंका में लौट आया । ___ लंका में उसका धूमधाम से स्वागत हुआ । नृत्य , वाद्य और दीपावली से उसकी अभ्यर्थना हुई । राक्षस कुलवधुओं ने उस पर अक्षत - लाजा बरसाईं। राक्षस - प्रमुख नागरों ने उसका जय- जयकार किया । हर्ष और उत्साह से अभिभूत हो रावण ने अपने स्वर्ण -महालय में प्रवेश किया । रावण ने अपने पीछे अपने छोटे भाई विभीषण को यौवराज्य दे, अपने नाना सुमाली को प्रधानमंत्री और सेनानायक बना दिया था । अब सबसे प्रथम इन्हीं दोनों ने खिन्न मन आकर उसका अभिनन्दन किया । उन्हें खिन्न देखकर रावण ने कहा - “ मातामह , क्या कारण है कि आप खिन्नमनस्क हैं ? अरे विभीषण भ्राता , क्यों तेरा मुख वर्षोन्मुख मेघ के समान हो रहा है ? " इस पर विभीषण तो मुख नीचा कर मौन हो रहा , परन्तु सुमाली दैत्य ने कहा “ पुत्र , हमारा कुल दूषित हो गया । घर का छिद्र हम तुझसे कैसे कहें ? " “ क्या हुआ मातामह? " " तेरी अनुपस्थिति में हम अमर्यादित हो गए । " “ किन्तु किस प्रकार ? " “ प्रमाद ही कहना चाहिए। और किस प्रकार ? " “किसका प्रमाद मातामह? ” “ मेरा ही पुत्र , तूने मुझे ही तो लंका और राजपरिवार की रक्षा का भार सौंपा था । विभीषण तो अभी निपट बालक ही है। " “ सो लंका में कहीं कुछ दोष उत्पन्न हो गया ? " " लंका में नहीं पुत्र , राजकुल में ! " " राजकुल में क्या हुआ ? " “ अनार्तराज मधु लंका आया था । " “ आनर्तराज मधु दैत्य तो हमारा सम्बन्धी है, आपका परिजन है, सुप्रतिष्ठित राजवर्गी है, योद्धा है। क्या उसका लंका में यथावत् स्वागत नहीं हुआ ? राजकुल ने कहीं अविनय किया उस सम्मान्य अतिथि के प्रति ? "