पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१७१

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साँचा:गलत" उसके सम्बन्ध में आप क्या कहना चाहते हैं ? " “ वह लंका में आया है । " " तो अवश्य ही आपने उसका समुचित सत्कार किया होगा । ” " नहीं किया , पुत्र ! " " नहीं किया ? " " हमारे ऊपर तुम गुरु भार सौंप गए थे लंका से भी बढ़कर राजकुल की रक्षा का । " “ सो फिर ? " " राजकुल हमारी ही असावधानी से दूषित हुआ । मधु दैत्य ... , “ सो तो सुना ,विद्युज्जिह्व की ही बात कहिए। " “ यह कहता हूं, वह इधर बहुधा आता- जाता रहा । उसने कहा- मृगया में मेरी अभिरुचि है। " " इसमें दोष क्या है? " " नहीं है। दोष की बात दूसरी है। " " क्या ? " “ वह सूर्पनखा में साभिप्राय दृष्टि रखता है। " " तो ? " " हम मधु दैत्य का कटु अनुभव ले चुके थे। हमने विद्युज्जिह्व को अन्तःपुर से दूर ही रखा। " " वह अब कहां है ? " "लंका ही में कहीं है। " " सूर्पनखा बहन यदि उसे पसन्द करती है तो हम उसे विद्युज्जिह्व को दे देंगे । " " आपकी बात दूसरी है, हम ऐसा करने में स्वतन्त्र न थे, हमने सावधानी रखी। " " क्या आपने सूर्पनखा से भी बात की ? " “ नहीं पुत्र , हम केवल मर्यादारक्षक हैं । " " क्या वह कभी यहां आता है ? “छिपकर । सूर्पनखा से मिलने । " “ किन्तु आप? " " उसे रोक नहीं सकते । बड़ा चतुर है, चपल भी । " “मैं सूर्पनखा से बात करूंगा और जिसने मेरा कुल दूषित किया है, उसे दंड दूंगा । पुत्र मेघनाद कहां है ? " “निकुम्भला - उद्यान में यज्ञ - दीक्षित है । " " तो वहीं मैं उससे मिलने जाऊंगा। मेरा रथ मंगवाइए। " सुमाली ने कहा - अच्छा और वह वहां से चला गया । रावण ने विभीषण की पीठ पर हाथ फेरकर कहा - " भाई, कातर न हो । जाओ, तुम विश्राम करो। ” और वह पुत्र मेघनाद से मिलने को उठा ।