पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१७८

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" तू क्या जीवन को प्यार करती है? " " क्यों नहीं! " " क्या बहुत अधिक ? " " हां ! " “ अच्छा , तो बता ,विद्युज्जिह्व कौन है ? " " वह एक प्रियदर्शी तरुण दानव कुमार है। " " तू उसे प्यार करती है ? " “ करती हूं । " " तो लजाती क्यों है ? तेरा चरित्र निर्मल है। प्यार न अपराध है, न पाप । जो सत्य है, वह कह । क्या वह तुझसे बहुधा मिलता रहता है ? " " नहीं , कभी -कभी। ” " क्या वह कभी - कभी आता है ? " " बहुधा आता है, पर मुझसे कभी - कभी मिलना होता है। " " ऐसा क्यों ? " “ महिषी और मातामह को यह रुचिकर नहीं है। “ क्यों भला ? " “ महिषी प्यार को स्वप्न कहती हैं और सदैव मुझे डराती हैं । उनका कहना है कि किसी पुरुष को प्यार करने से जीवन का प्यार नष्ट हो सकता है । " “ किन्तु तू क्या समझती है? ” “मैं तो कुछ नहीं समझती, परन्तु मातामह की बात कुछ और है। ” “ वह क्या है ? " " उनकी विवाह करने की आय बीत चुकी है, वे कहते हैं प्रेम एक धोखा है। " " मातामह की यह धारणा तुझे कैसी लगती है? ” । “ ओह , यदि उसे सत्य मान लिया जाए , तो हमें अपने ही जीवन पर अधिकार न रहे । " “ ऐसा त क्यों सोचती है भला ? " " इसलिए कि हम जीवन में एकाकी नहीं हैं । " "निस्सन्देह, परन्तु हमें दूसरों के साथ जीवित रहने के लिए उनके प्रति सच्चे रहना आवश्यक है। यदि दूसरों के साथ जीवन का लय करने में इतना- सा भी असत्य रह जाएगा , तो जीवन का आनन्द समाप्त हो जाएगा। " “ ऐसा समझती हूं , रक्षपति । " “ तो बहन , यह हमारे लिए आवश्यक है कि जो लोग हमारे जीवन के निकट आएं , उन्हें और अपने - आपको भी हम खूब सावधानी से देखें । निस्सन्देह, हमें अपने जीवन पर अधिकार है । उसी प्रकार तुझे उस व्यक्ति को प्यार करने का अधिकार है , जिसे तू प्रियदर्शी कहती है। तू सचेष्ट रह और यदि कहीं भूल हो तो गुप्त न रख। जीवन की निष्ठा इसी में है। " “ मैं समझ गई। " " अच्छा तो सुन , क्या विद्युज्जिब से विवाह करना चाहती है? "