जल में घुसा । जब देवों ने जयन्त के रथ को खाली तथा मातलि को मूर्च्छित देखा तो जयन्त को मरा समझ रणस्थली से भाग निकले। इसी समय मातलि की मूर्छा भंग हुई और वह रथ दौड़ाकर व्याकुल भाव से देवराट् इन्द्र के पास पहुंचा। अपने पुत्र को रणक्षेत्र से इस प्रकार गायब सुन देवराट् इन्द्र वज्रहस्त हो स्वयं रथ में बैठ युद्धस्थली में पहुंचा। शत -सहस्र मेघों की गर्जना के समान ध्वनित उस रथ को हेम - पर्वत की भांति अबाध गति से आता देख राक्षस भय से चीखने चिल्लाने लगे। अब रुद्र, वसु , आदित्य और मरुद्ण इन्द्र की रक्षा करते हुए उसे चारों ओर से घेरकर चले। यह देख रावण ने मेघनाद को युद्ध से विरत करके कहा - “ तू तनिक विश्राम कर पुत्र , तब तक मैं इस ब्रह्मा देवराट् को देखें । ” कुम्भकर्ण रथ के आगे तथा शुक , सारण दायें - बायें और भीम -पराक्रम सुमाली दैत्य रावण की पृष्ठ- रक्षा पर सन्नद्ध हो चले । चारों ओर राक्षसों का कटक। क्षण- भर ही में घमासान मच गया । कुम्भकर्ण को अपना - पराया कुछ न सूझ पड़ता था । वह जिसको भी सामने पाता , अपने दांतों , भुजाओं और लातों से मसल डालता । शस्त्र ग्रहण करने का उसे विचार ही न आता था । वह देवों को बीच से चीर चीरकर इधर - उधर फेंकने लगा। उसका यह बीभत्स कार्य देख देव त्राहि माम् - त्राहि माम् करने और इधर - उधर भागने लगे । अब पराक्रमी मेघनाद रुद्रों से भिड़ गया । रुद्रों ने उसके चारों ओर से लिपटकर उसके अंग विदीर्ण कर डाले । उनमें से रक्त झरने लगा । उधर मरुद्गणों ने राक्षसों को मार- मारकर बिछा दिया । यद्ध- भूमि मरों और अधमरों से पट गई । अनेक राक्षस अपने वाहनों पर गिरकर मर गए । वहां रक्त की नदी बह चली । उसमें तैरती हुई लोथें जलचर - सी दिखाई देने लगीं । आकाश में चील , गिद्ध और कौए उड़ने लगे। बड़ा ही बीभत्य दृश्य उपस्थित हो गया । रावण ने जब यह दशा देखी तो वह अपना रथ बढ़ाकर इन्द्र को ललकारता तथा बाणों की वर्षा करता आगे बढ़ा। इन्द्र ने भी धनुष को टंकारकर शरसंधान किया । अब रावण और इन्द्र का ऐसा घनघोर युद्ध हुआ कि जैसा किसी ने न देखा, न सुना होगा । इसी समय मेघनाद ने माया रची । रणक्षेत्र में अन्धकार छा गया । इन्द्र, रावण और मेघनाद को छोड़ समस्त वीर अन्धों के समान आचरण करने लगे । अब रावण ने ललकारकर सारथि से कहा - “ अरे , मेरा रथ मध्य युद्ध- भूमि में ले चल , आज मैं इस आर्यवीर्यान् की देव - भूमि से देवों का बीज नाश करूंगा। देवों का वध करने से मेरे कुल की कीर्ति बढ़ेगी । चल - चल - उदय पर्वत की ओर चल ! ” रावण की इस आज्ञा को सुन सारथि रथ को यक्ति से वक्रगति से चलाकर देवों की सेना को चीरता हुआ उसके मध्य भाग में जा पहुंचा। इस प्रकार रावण को आते देख इन्द्र ने चिल्लाकर कहा - “ इसे जीता पकड़ना चाहिए। जिस प्रकार हमने बलि को बांधकर त्रिलोकी का राज्य पाया है, उसी प्रकार इस दुष्ट वैश्रवण को भी बांध लो । ” यह कहकर इन्द्र वहां से हट गया । आदित्य , रुद्र , वसु और मरुद्गणों ने अब रावण को चारों ओर से घेर लिया और बाणों से उसे ढांप दिया । इस पर सब राक्षस जोर - जोर से चिल्लाने लगे और कहने लगे - " हाय - हाय , रक्षेन्द्र को इन्द्र ने बन्दी बना लिया । अब कौन हमारी रक्षा करेगा ? " अब प्रहस्त , महोदर , मारीच, महापाश्र्व, महादंष्ट्र , यज्ञकोप , दूषण, खर, त्रिशिरा , दुर्मुख, अतिकाय , देवान्तक , नरान्तक आदि रण - पण्डित महारथी राक्षस भट सुमाली को
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