आगे कर दैव - सैन्य में धंस गए । सुमाली ने यहां ऐसा समर किया कि देव - सेना की सारी व्यवस्था भंग हो गई । यह देख त्वष्टा और पूषा दो आदित्य सेना- सहित सुमाली पर टूट पड़े । इसी समय आठवें वसु सावित्र ने भी वसुओं को ले सुमाली को घेर लिया । अब चहुंमुखी युद्ध होने लगा और राक्षसों की सेना कट - कटकर गिरने लगी । सुमाली और सावित्र में अब घनघोर युद्ध होने लगा। दोनों ही वीर परम पराक्रमी थे। त्वष्टा और पूषा धकेलकर राक्षसों के प्रहस्त , महोदर आदि महारथियों को युद्ध में फंसाकर सुमाली से दूर ले गए। दो मुहूर्त के तुमुल संग्राम में वसु सावित्र ने सुमाली का रथ तोड़ दिया , घोड़ों को मार डाला । यह देख ज्यों ही सुमाली रथ से कूदा , त्यों ही सावित्र वसु ने उछलकर कालदण्ड के समान भयंकर गदा कई बार घुमाकर उसके मस्तक पर दे मारी। उसकी चोट से सुमाली का मस्तक चूर - चूर हो गया और सुमाली xमुर्र हो भूमि पर गिर गया । यह देख राक्षसों में हाहाकार मच गया । राक्षस रोते और बाल नोचते इधर - उधर भागने लगे । सुमाली के वध से क्रुद्ध अग्नि के समान जलता हुआ मेघनाद रथ पर बैठ बिजली की भांति इन्द्र पर टूट पड़ा । छूटते ही उसने शक्ति का इन्द्र के वक्ष में प्रहार किया । साथ ही दस बाणों से सारथि मातलि और दस बाणों से उसके घोड़ों को बींध डाला। फिर उसने माया विस्तार करके अन्धकार कर दिया । सब देव व्याकुल हो गए । तब मेघनाद निश्शंक इन्द्र के रथ पर चढ़ गया और उसे जकड़कर रस्सियों से बांध, पीठ पर उठा, गर्जना करता हुआ राक्षसों की सेना में लौट आया । जब प्रकाश हुआ और देवों ने इन्द्र को रथ पर नहीं देखा, तो वे बड़े घबराए। न उन्हें मेघनाद ही दिखाई दिया , न इन्द्र । उन्होंने खीझकर रावण पर प्रचण्ड आक्रमण किया । आदित्यों और वसुओं ने उस पर अविरत प्रहार कर उसे जर्जर कर दिया । इसी समय अदृष्ट रह मेघनाद ने आकाशवाणी से पुकारा – “ हे पिता , अब युद्ध का क्या प्रयोजन है, हम विजयी हो गए हैं । त्रिलोकी के स्वामी इन्द्र को हमने बंदी बना लिया है । अब इन क्षुद्र देवताओं को मारने से क्या लाभ है ? चलिए, लंका को लौट चलिए और त्रिलोक का राज्य भोगिए। ” मेघनाद की यह सारगर्भित आकाशवाणी सुन रावण संप्रहर्षित हो गया । आकाशवाणी सुन देवता भी घबरा गए । इसी समय प्रहस्त ने शंख फूंककर संकेत किया और सारण वक्र गति से रथ को चलाकर रावण को युद्ध- भूमि से बाहर ले चला । रावण के रथ की ध्वजा देखते ही राक्षसों ने हर्ष-नाद किया । राक्षसों की सैन्य में विजय - दुन्दुभि बज उठी । अपनी विजय से गर्वित रावण ने हर्षित हो इन्द्रजयी पुत्र को छाती से लगाकर कहा - " अरे पुत्र , तू आज से त्रैलोक्य में इन्द्रजित् के नाम से विख्यात हो ! तूने आज इन्द्र को बन्दी बनाकर हमारे कुल ऐश्वर्य को बढ़ाया है। अब इन्द्र को लेकर अभी लंका को प्रस्थान कर। पीछे मैं भी आता हूं । ” इतना कह रावण ने उसी क्षण सुरक्षा के लिए बहुत - सी सैन्य दे, बन्दी इन्द्र के साथ इन्द्रजयी मेघनाद को लंका भेज दिया ।
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