71. लंका की ओर अब हर्षित , तृप्तमनोरथ , अप्रतिरथ , चक्रवर्ती, त्रैलोक्य -विजयी रावण लौटा । उसने देवलोक से एक सहस्र कुमारिकाएं हरण कीं । गन्धर्वलोक पहुंच मित्रावसु गन्धर्व की वन्दना की , प्रियतमा चित्रांगदा को हृदय से लगाया । वहां से प्रियतमा चित्रांगदा को संग ले तथा मित्रावसु से बहुत धन - उपानय ले , वह लंका की ओर चला । मार्ग में नागों, यक्षों , मनुष्यों , देवों , दानवों और राजर्षियों के जो - जो जनपद पड़े, सभी में अपनी विजय- वैजयन्ती फहराता, अपनी रक्ष - संस्कृति का डंका पीटता और जनपदों की सुन्दरी कन्याओं का हरण करता , विरोधियों का वध कर उनके अवरोध की बहू- बेटियों को बलपूर्वक समेटता , अपने पुष्पक विमान पर बैठ , आगे बढ़ता चला गया । वे सब अपहृत बालाएं चीत्कार करतीं , रुदन करती जा रही थीं । उनके आंसू सूखते न थे। वे सब किशोरावस्था वाली बालाएं अपने सौन्दर्य से रति का दर्प दलन करने वाली थीं । उनके लम्बे - लम्बे , काले - काले बाल और समस्त अंग अत्यन्त ही कोमल और सुडौल थे । उनके मुख पूर्णिमा के चन्द्र के समान सुन्दर थे। उनके उभरे उरोज , पतली कमर और लावण्य को देख मन वश में नहीं रहता था । रावण उन्हें बलात्कार से हरकर लंका में ले जा रहा था । उन्हें वह अपनी सब लूटी हई संपदा से बढ़कर समझता था । जिस प्रकार सिंह के चंगुल में फंसी हरिणी तड़पती है , उसी प्रकार वे सब बालाएं व्याकुल हो रही थीं । वे अपने पतियों, माता-पिताओं और परिजनों से बलात् पृथक् करके हरण की गई थीं । जिन्हें देख - देखकर रावण कामविह्वल हो रहा था और वे सब कुकरी की भांति व्याकुल हो रुदन करती जा रही थीं । अन्त में वह लंका पहंचा। विजय-डंका बजाते हए उसने लंका में प्रवेश किया । नगरनिवासियों ने उसका जय- जयकार किया । अन्त में , जब मन्दोदरी ने आगे बढ़कर उसका अर्घ्य-पाद्य से सत्कार किया , तब चित्रांगदा को आगे कर उसने कहा - “प्रिये मन्दोदरी, यह तेरी अनुगता गन्धर्वकुमारी महिषी चित्रांगदा उपस्थित है। तुम दोनों की सेवा के लिए ये दस सहस्र कुलीन कुमारिकाएं हैं , जो देव , दैत्य , नाग , मानव, आनव, सभी सम्भ्रान्त कुलों की हैं । लंका में घर -घर आनन्द-मंगल होने लगा, दीपावली हुई। नृत्य - पान - गोष्ठी हुई। रावण के मणिहर्म्य में स्वर्ण , रत्न लुटाए गए। राजमहिषी मन्दोदरी और चित्रांगदा ने विविध मंगल - अनुष्ठान किए। पशुओं की बलि दी गई। यज्ञ हए और बड़े- बड़े पान महोत्सव हुए । इस समय लंका आनन्द और उल्लास के झूले में झूलने लगी ।
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२४७
दिखावट