72. रंग में भंग अभी लंका में विजयोत्सव , पान - गोष्ठियां , नृत्य -विलास , दीपावलियां हो ही रही थीं कि अकस्मात् रंग में भंग हो गया , जिससे सारी लंका में विषाद और क्रोध की भावना फैल गई। नाच -रंग , पान गोष्ठियां तुरन्त रोक दी गईं। नगर और मणिमहल , सर्वत्र ही शोक छा गया । कोई एक तपस्वी - बहिष्कृत - राज्यच्युत आर्य राजकुमार दण्डकारण्य में आए हैं , जो धनुष - बाण धारण करते हैं । उससे दण्डकारण्य की रानी सूर्पनखा का विग्रह हो गया है। उन्होंने धृष्टतापूर्वक राक्षस - राजनन्दिनी सूर्पनखा का अंग -भंग कर दिया है, उसकी नाक काट ली है और जनस्थान के रक्षक चौदह हजार राक्षसों को खर - दूषण सहित मार डाला है । अब सूर्पनखा रोती -कलपती, विलाप करती लंका में रक्षेन्द्र रावण की शरणापन्न हुई है । त्रिलोकीपति विश्वविजयी रावण प्रिय बहन का यह भयानक अभियोग सुन क्रोध और शोक से जड़ हो गया है। इस भयानक अपमान का वह उन तपस्वी राजकुमारों को क्या दण्ड दे, यही वह निर्णय नहीं कर पा रहा है । वह अपने मणिमहालय में पड़ा लम्बी उसासें ले रहा जगज्जयी महातेज रावण अपने मणिमहालय के सतखण्डे की छत पर स्वर्ण सिंहासन पर अति उद्विग्न बैठा था । देवों के युद्ध में उसके अंग पर जो वज्र- प्रहार हुए थे, उसकी चोटें अभी उसके शरीर पर ताजा थीं । इन्द्र के ऐरावत ने अपने जो दांत उसकी छाती में गड़ा दिए थे, उनके चिह्न अभी भी उसके वक्ष पर थे। वह राजोचित वस्त्राभरणों से सज्जित , सुन्दरी ताम्बूल - वाहिनियों , चंवरधारिणियों, प्रसाधिकाओं से परिवृत मूर्त हिमशैल - जैसा दीख रहा था । बन्दीजन उसका स्तुतिगान कर रहे थे और सब मन्त्री और राजवर्गी पुरुष हाथ बांध अधोमुख दीन भाव से उसके सम्मुख बैठे थे। अब उसकी बहन सूर्पनखा उसके सम्मुख खड़ी हो कहने लगी __ " भाई , मेरी इस दुर्दशा को देख । तू अभिताभ यदि इसे सहन करेगा तो तू भी उस निष्कासित के हाथों अछूता न बचा रहेगा । " रावण ने विपन्न बहन को खिन्न नेत्रों से देखा, फिर कहा “ बहन , धैर्य रख , रावण को क्रुद्ध करके यमराज भी सुख से नहीं जी सकता । तू विस्तार से उस आर्य राजपुत्र का बखान कर । क्या वह सम्पूर्ण देवताओं और यम , कुबेर , दिक्पालों - सहित जनस्थान में आया है? " “ वह दाशरथि राम कहाता है । उसके साथ उसकी पत्नी सीता और एक भाई है । उसने मुनि का वेश धारण किया है, परन्तु है वह धनुर्धारी और प्रचण्ड योद्धा। उसने अकेले ही बात की बात में खर - दूषण- सहित हमारे चौदह हजार राक्षसों को मार डाला है। "
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