यदु के वंश में एक चक्रवर्ती राजा था । यह चित्ररथ का पुत्र था । शशिबिन्दु विदर्भ का राजा था । इसने अनेक अश्वमेध यज्ञ किए और बहुत स्वर्ण बांटा । इसके पास स्वर्ण का अटूट भण्डार था । प्रसिद्ध चक्रवर्ती मानव मान्धाता शशिबिन्दु का दामाद था । कपियों ने शशिबिन्दु के पिता चित्ररथ का यज्ञ कराया । उसमें उस अकेले को ही अन्नादि का अध्यक्ष बनाया । इसके बाद उसी यज्ञ में चित्ररथ ने यह घोषणा कर दी कि मेरे वंश में एक ही छत्रपति होगा । शेष उनके अनुजीवी होंगे। अर्थात् जैसे मनु ने अपने सब पुत्रों में राज्य बांटा ; उस प्रकार चित्ररथ की भावी सन्तानों में राज्य का बंटबारा नहीं होगा । राज्य केवल ज्येष्ठ भाई का रहेगा । वही राजा कहाएगा । शेष भाई उसके अनुजीवी रहेंगे । उन्हें गुजारा मिलेगा । आगे चलकर मानवों ने भी इस नियम को मान लिया और तब राज्यों के बंटवारे समाप्त हो गए। जो गद्दियां स्थापित हो चुकी थीं , वही संपुष्ट होती रहीं । _____ पीछे हम बता चुके हैं कि आर्यावर्त में इस समय सूर्यवंश की पांच शाखाएं स्थापित थीं । एक - उत्तरकोसल राज्यवंश, दूसरा - दक्षिण कोसल राजवंश, तीसरा शर्यात आनर्त राज्यवंश, चौथा मैथिल राज्यवंश और पांचवां - वैशाली राज्यवंश। उत्तर कोसल राज्यवंश की 39वीं पीढ़ी में राम का जन्म हुआ । - इस वंश में अब तक मनु , इक्ष्वाकु , युवनाश्व , बृहदश्व, मान्धाता, त्रसदस्यु , अम्बरीष , दिलीप, रघु और दशरथ विश्रुत पुरुष हो चुके थे। इस समय उत्तरकोशल राज्य के उत्तराधिकारी राम वनवास कर रहे थे । दशरथ की मृत्यु हो चुकी थी । दशरथ महारथी योद्धा और प्रतिष्ठित राजा थे। देवराज इन्द्र से उनके मैत्री सम्बन्ध थे। वे नीतिमान् और सत्यप्रतिज्ञ थे। उनकी तीन महिषियां थीं - प्रथम कौशल्या दक्षिण कोशलाधिपति भानुमान् की पुत्री , द्वितीय सुमित्रा मगधराजपुत्री , तृतीय कैकेयी - उत्तर पश्चिमी आनवनरेश केकय की पुत्री । दशरथ ने सिन्धु , सौवीर , सौराष्ट्र , मत्स्य , काशी , दक्षिण कोसल, मगध , अंग , बंग , कलिंग और द्रविड़ - नरेशों को जय किया था तथा अनेक अश्वमेध यज्ञ किए थे। गिरिव्रज के प्रसिद्ध युद्ध में उत्तर पांचाल दिवोदास की सहायता की थी तथा वैजयन्ती के कुलीतर के वंशधर तिमिध्वज शम्बर असुर को मारा था । अंग - नरेश लोमपाद इनके मित्र थे। राम के जन्म से पूर्व इस उत्तर कोसल राज्य के भी कुछ शाखा- राज्य स्थापित हो चुके थे, जिनमें एक शाखा हरिश्चन्द्र -वंश की थी । इसकी राजधानी कान्यकुब्ज के पास थी । इस समय इस गद्दी पर सम्भवतः रोहिताश्व जीवित थे । मुख्य सूर्यवंश शाखा की तीसवीं पीढ़ी से राम से कोई नौ पीढ़ी पूर्व सिन्धुद्वीप राजा के काल में अनरण्य ने यह गद्दी स्थापित की थी । इनकी पांचवीं पीढ़ी में त्रैयारुण हुए । उनके पुत्र सत्यव्रत (त्रिशंकु ) और उनके पुत्र हरिश्चन्द्र, जो पीछे महासत्यवादी प्रसिद्ध हुए । राजा त्रैयारुण वेदज्ञ और प्रतापी था । उसका पुत्र सत्यव्रत दुराचारी तथा दुराग्रही था । उसने तीन बड़े अपराध किए- एक नव -विवाहिता ऋषि- पत्नी का हरणकर उससे बलात्कार किया , चाण्डालों के साथ खान पान रखा, कुलगुरु वशिष्ठ की गाय को मारकर खा गया । इससे क्रुद्ध होकर पिता ने वशिष्ठ के कहने से उसे राज्यच्युत कर दिया और उसे त्रिशंकु का कुनाम दिया । यौवराज्य से च्युत होकर वह वन में रहने लगा । पिता के मरने पर भी वशिष्ठ ने उसे गद्दी नहीं सौंपी - स्वयं ही राज्यभार संभाला। इसी समय कान्यकुब्जपति विश्वामित्र ने राज्य पर चढ़ाई की और
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