पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२८

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बाढ़ के पानी द्वारा जमी हुई चिकनी मिट्टी का चार फुट मोटा स्तर प्राप्त हुआ है । यूरोपीय पुरातत्त्ववेत्ताओं का यह मत है कि मिट्टी का यह स्तर उस बड़ी बाढ़ द्वारा बना था , जिसको प्राचीन ग्रन्थों में नूह की प्रलय कहते हैं । ताम्रयुग की प्रोटोइलामाइट सभ्यता के अवशेष इस प्रलय के स्तर के नीचे प्राप्त हुए हैं । इसका यह अर्थ लगाया गया कि इस प्रलय से प्रथम ही प्रोटोइलामाइट सभ्यता का अस्तित्व था । इस सभ्यता के अवशेषों के नीचे कुछ स्थानों में निम्न श्रेणी की पाषाण- सभ्यता के चिह्न प्राप्त हुए हैं । यह पाषाण- सभ्यता अत्यन्त निम्न श्रेणी की थी । इसमें प्रोटोइलामाइट सभ्यता के विकसित होने के कुछ प्रमाण नहीं मिले। इस पर से पुरातत्त्व के इन विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रोटोइलामाइट लोग अपनी ताम्र- सभ्यता के साथ किसी अन्य देश से इलाम और मैसोपोटामिया में आकर बसे थे। यहाँ आकर उन्होंने यहाँ की मूल निवासी पाषाण - सभ्यता वाली जाति को नष्ट कर दिया और स्वयं यहाँ बस गए । ये खेती करते , पशु पालते तथा ऊनी वस्त्र पहनते थे। तांबे के हथियार और औज़ार इस्तेमाल करते थे। ये किस देश के मूल निवासी थे, इसका पता ये महानुभाव पुरातत्त्ववेत्ता नहीं लगा सके हैं । यह जाति इस प्रलय में नष्ट हो गई। प्रलय के बाद एक जाति कहीं से कांसे की सभ्यता वाली आई और मैसोपोटामिया में बस गई। यही जाति सुमेरु कहाई। डॉक्टर फ्रेंकफोर्ट , डी मार्गन , डॉ .लेंग्डन आदि विद्वानों ने यह निर्णय दिया है । परन्तु यह प्रोटोइलामाइट जाति कौन थी , प्रलय के बाद वह कहाँ चली गई , इसका कुछ पता ये महानुभाव नहीं पा सके। इसके बाद सर जान मार्शल ने सिन्ध के आमरी प्रदेश की खदाई की । उन्होंने उस ताम्र- सभ्यता को आमरी - सभ्यता का नाम दिया और भूगर्भ में प्राप्त अनेक वस्तुओं के साम्य से उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि प्रोटोइलामाइट सभ्यता तथा आमरी - सभ्यता एक ही है । यही सभ्यता सप्तसिन्धु में सरस्वती- तट पर विकसित हुई थी । वास्तव में ये लोग आर्य ही थे जो बिलोचिस्तान और ईरान होते हुए इलाम तथा मैसोपोटामिया में प्रलय के बाद जाकर बस गए थे । अब मैं इन सब पुरातत्त्ववेत्ताओं की इन गवेषाणाओं पर हर्फ मारने की धष्टता करता हूं । जिन सूत्रों को हाथ में लेकर मैं आगे बढ़ना चाहता हूं , उनमें इन पाश्चात्य विद्वानों के वर्णित स्थान सुषा , एलम, सप्तसिन्धु , प्रलय , और इन प्रदेशों में जातियों के आवागमन की मान्यताओं के अतिरिक्त ऋग्वेद, ब्राह्मण , विष्णु -पुराण, मत्स्यपुराण तथा अन्य पुराणों के अस्तव्यस्त - अव्यवस्थित वर्णन हैं । इन्हीं सूत्रों पर मैं इस प्रागैतिहासिक काल के कुछ धुंधले रेखाचित्र यहाँ उपस्थित करता हूँ। मैं इन आगत आक्रान्ता - समागत जनों के नाम धाम -जाति तथा उनके और भी महत्त्वपूर्ण विवरण यहाँ उपस्थित करूँगा, जिनके मूल वक्तव्य पुराणों आदि में हैं , और जिनका समर्थन पर्शिया , अरब, अफ्रीका, मिस्र और अरब तथा मध्य एशिया के प्राचीन इतिहासों से होता है । सबसे पहले मैं समय -निरूपण के सम्बन्ध में यह कहना चाहता हूँ कि पुराणों में प्राचीन समय का विभाग मन्वन्तरों की गणना के अनुसार किया गया है । मन्वन्तर को छोड़कर अतीत काल की स्थिति जानने का कोई और उपाय नहीं है । परन्तु पुराणों में यह काल - गणना इतनी बढ़ा - चढ़ाकर की गई है कि उनकी वर्णित काल -गणना बेकार ही है । परन्तु मन्वन्तरों के कथन से हमें यह लाभ अवश्य हुआ कि वैवस्वत मनु से पहले हमें छः