कुरिशि प्रान्त में अपना निवास बनाया। कुरिशि , कुरैशी संभवतः, कवि शुक्राचार्य के ही वंशधर हैं । कुरैशी भाषा ही कुरान की भाषा है । यह भाषा हामियारी भाषा से भिन्न है। शुक्र का नाम काव्यपुरुष था ही । अरब में शुक्र का नाम पूज्य देवों की भांति ‘ अल उजाह प्रसिद्ध है । कुरैशी देश में , मक्का में बाद में शुक्र का मन्दिर स्थापित हुआ, जो काव्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आजकल का मक्का का प्रसिद्ध ‘ काबा यही काव्यपुरुष शुक्र का मन्दिर है । उस काल में बृहस्पति , मंगल आदि अनेक ग्रहों और देवों की पूजा भी अरब लोग करते थे उनकी मूर्तियां भी काव्य - मन्दिर में रखी गई थीं तथा एक प्राचीन शिवलिंग भी वहां था जिसकी पूजा होती थी और जिसका नाम मुन्नाह था । यह एक काले पत्थर का चार फीट ऊंचा और दो फीट चौड़ा लिंग था जो सोने की जलहरी पर रखा रहता था । इनके अतिरिक्त सूर्य के मित्र गरुड़ की , उच्चैःश्रवा घोड़े या सूर्यपुत्र अश्विनीकुमारों की , मनुपुत्र नृसिंह की मूर्तियां भी वहां थीं । सूर्य की भी एक मूर्ति रखी गई थी जिसका एक हाथ सोने का था । इसके अतिरिक्त और भी मूर्तियां थीं । मुन्नाह के उपासक खोजा थे। अल उजाह कुरैशियों का प्रधान देव था । इन सब मूर्तियों को बाद में मुसलमानों के पैगम्बर मुहम्मद ने दूर करके केवल प्राचीन शिवलिंग ही की पूजा कायम रखी थी । ‘ काव्य के नाम पर मन्दिर का नाम ‘ काबा प्रसिद्ध है तथा शुक्रवार को सभी अरब -निवासी जुम्मा , महान् और पवित्र दिन मानते हैं तथा काव्य - कविता में अरब के लोग संसार के सभी देशों के प्रमुख प्रमाणित पुराणों से ऐसा भी प्रमाणित है कि दैत्येन्द्र बलि ने काश्यप सागर - तट से अपनी राजधानी हटाकर अरब के निकट एक नया नगर - बलासुरा नाम का बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया था तथा यहीं पर उसका ऐन्द्राभिषेक हुआ था और यहीं पर विष्णु और इन्द्र उसके पास भूमि - याचना करने आए थे तथा यहीं से बलि की नीति से असन्तुष्ट होकर शुक्र अरब देश में चले गए थे। बलि की यही प्राचीन राजधानी बलासुरा आजकल का विख्यात बसरा नगर है। यहीं बलि को बन्दी बनाया गया था । दमिश्क वशिष्ठ – दमी लोगों का प्राचीन नगर है । शाका, मनना , शोमार आदि भी प्राचीन वाशिष्ठों के नगर हैं । वर्तमान बसरा नगर अति प्राचीन बलि के बलासुरा नगर के ध्वंस पर मुसलमानों के खलीफा उमर ने ई. सन् 640 के लगभग बसाया था । बहुत सम्भव है कि तब वह कोई साधारण उजाड़ बस्ती के रूप में रहा हो । वर्तमान बसरा मेसोपोटामिया या इराक का खास नगर तथा बड़ा बन्दरगाह है। यह नगर समुद्र - तट से काफी दूर ‘ शत्तुल - अरब नामक नदी के निकट ‘ अल- अशार के तट पर बसा है। शतुल - अरब इतनी गहरी नदी है कि चलने वाले छोटे -बड़े सभी जहाज उसमें आ - जा सकते हैं । आरम्भ में खलीफा उमर की आज्ञा से यहां केवल मुसलमानी सेनाओं की छावनी अतवा नामक सरदार ने - जब वह ईरानियों से लड़ रहा था डाली थी । यह स्थान तब दजला नदी से दस मील के अन्तर पर वर्तमान नगर से उत्तर -पश्चिमी दिशा में था । कहते हैं , कभी इस नगर की आबादी बहुत घनी थी तथा नगर में बीस हजार नहरें थीं , जिनमें नौकाएं चलती थीं । यहां एक प्रसिद्ध पुस्तकालय भी था तथा प्राचीनकाल में यह नगर विद्या और व्यापार का केन्द्र था । मुस्लिम काल में यह नगर राजनीति का भी वैसा ही केन्द्र था जैसा विद्या का , तथा यहां बड़े- बड़े प्रसिद्ध विद्वान् रहते थे ।
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