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भ्राता हो यह रत्न -माला लो , जिसमें विजयलक्ष्मी निहित है । तारा का ध्यान रखना , यह दिव्य दृष्टि रखती है और भावी घटनाओं के चिह्नों को जानने में पारंगत है। " फिर अंगद की ओर देखकर कहा - “ पुत्र , परिस्थिति को देखते हुए, दु: ख- सुख सहन करते हुए अपने चाचा सुग्रीव की आज्ञा के अधीन रहना! इतना कह बालि ने प्राण त्याग दिए। तारा मर्मस्पर्शी आर्तनाद करती हुई बालि के मुख को देखकर कहने लगी - “ हे वानरराज, कुछ मेरा भी विचार किया ? मालूम होता है कि यह भूमि आपको मुझसे भी अधिक प्रिय है ! अरे , जिस शय्या पर तुम सदा शत्रु को सुलाते थे, उसी पर आज स्वयं सो रहे हो ! आज तो मैं विधवा हो गई । अब पुत्रवती होने ही से क्या ? अरे, आज तुम अपने ही रक्त पर लेटे हो ! अंगद, पिता को प्रणाम तो कर , पुत्र ! " इतना कह अंगद - सहित तारा बालि के चरणों में लोट गई ।