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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३३२

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भी लंका जाएंगे और प्रभु- कार्य करेंगे । आप हमें वहां जाने का उपाय बताइए। " __ " बताता हूं - ध्यान से सुनो! प्रथम आकाश -मार्ग है। आकाश -मार्ग के सात स्तर हैं । प्रथम स्तर पर गौरेया , कबूतर आदि अन्नभक्षी पक्षी उड़ते हैं । उसके ऊपर दूसरा स्तर है , जहां वृक्षों के फल खानेवाले तोता , कौआ आदि पक्षी उड़ते है । उससे ऊपर तीसरे स्तर पर चील , क्रौंच , कुरा उड़ते हैं । बाज , गिद्ध क्रमश: चौथे-पांचवें स्तर तक पहुंचते हैं । अत्यन्त सुन्दर पक्षी हंस उनसे भी ऊपर छठे स्तर पर उड़ता है । परन्तु सबसे ऊंची और वेगशाली जाति गरुड़ों की है, जो सातवें स्तर पर आकाशगमन करते हैं । मेरा जन्म भी गरुड़ - कुल में हुआ है और हम मांसभुक् जाति के पुरुष हैं । हमारी दृष्टि सौ योजन तक जाती है। यदि मैं आज साधनसम्पन्न होता तो आकाश -मार्ग से जाकर अनायास ही तुम्हें लंका का सन्देश ला देता । परन्तु अब तो यह दुस्तर है । फिर भी रावण से मुझे अपने भाई का बदला लेना है । सो यदि तुममें से कोई वानर भट विकट साहसिक हो तो मैं उसे समुद्र - उल्लंघन करने की सहज विधि बता दूंगा । समुद्र पार होने पर लंका में जा वह सुभट कृतकृत्य हो सकता है । " ___ अंगद ने कहा - “ आर्य सम्पाति , आप हमें वह विधि बताइए जिससे यह दुर्लघ्य सागर पारकर हम लंका में पहुंच सकें । " सम्पाति ने कहा - “ अच्छा, यह रहस्य , जिसे लंकाधिपति रावण भी नहीं जानता है, मैं बताता हूं । देखो - समुद्र- तट से धनुष्कोटि के अन्तर पर गृध्रकूट गिरिशृंखला त्रिकूट तक समुद्र- गर्भ में जलमग्न चली गई है । स्थान - स्थान पर वहां विश्राम करने की सुविधा है । जो कोई साहसी वीर सौ योजन समुद्र को इस भांति तैरकर उल्लंघन करने की शक्ति रखता हो उसे इस गिरि - शृंखला से बहुत सहारा मिलेगा और वह अवश्य ही अपने विक्रम से समुद्र के पार पहुंच जाएगा । " सम्पाति के ये गूढ़ वचन सुन सब वानर उसे प्रणाम कर समुद्र- तट की ओर सीता की खोज के लिए उत्साहित हो चल दिए ।