पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३४३

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है । वैसा ही कोमलकान्त मुख है। इसकी दीप्ति से इस दशा में भी दशों दिशाएं प्रदीप्त हो रही हैं । इन्द्रमणि कण्ठ में पहनने से इसका कण्ठ नीलवर्ण दीख रहा है, होंठ अब भी बिम्बाफल के समान लाल हैं । इसका कटिभाग और चरण मनोरम हैं । कमल के समान नेत्रों में शील , संकोच और वेदना परिलक्षित है। यह तो पूर्ण चन्द्र के समान संसार को ही प्रियदर्शना प्रतीत होगी। यह संयमशीला तपस्विनी के समान खुली भूमि पर बैठी है । शोकातुर होने के कारण इसकी शोभा नष्ट हो गई है। मारुति ने बारीकी से सीता के वस्त्राभरण और आकृति का निरीक्षण कर तथा श्रीराम के वर्णन से उसे मिलाकर देख लिया और तब उन्होंने निर्णय किया कि यही वास्तव में श्रीराम की प्रिय पत्नी जनकजा सीता हैं ।