पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३४९

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मैं पकड़ा गया तो फिर राम का काम करने वाला साधक पृथ्वी पर दूसरा नहीं है। मैं दूत हूं , मुझे देश - काल का विचार कर सावधानी से काम करना चाहिए। असावधानी से सब काम बिगड़ जाते हैं तथा अपने को बहुत बुद्धिमान समझने वाले दूत भी काम को बिगाड़ देते हैं । मेरा सबसे मुख्य काम यह है कि मैं अपने को यथावत् भगवती सीता पर प्रकट करूं और उनका विश्वासभाजन बनूं । हनुमान मन में यह सोच ही रहे थे कि राक्षसियां मदोन्मत्त हो तथा त्रिजटा की डांट खाकर दूर चली गईं। इसी समय सीता ने भी उन्हें देखा । अब उन्होंने सुअवसर पा मृदु मन्द स्वर में मानवी भाषा में कहा - “ इक्ष्वाकुवंश में महातेजस्वी धर्मज्ञ राजा दशरथ हुए , जो भूमण्डल में सत्यप्रतिज्ञ प्रसिद्ध हैं । उनके पुत्र श्री राम पृथ्वी के सब धनुर्धारियों में श्रेष्ठ हैं । वे पिता की आज्ञा से उनके वचन की रक्षा के लिए पत्नी और भाई सहित वन आए थे। उन्होंने जनस्थान में चौदह सहस्र राक्षसों का वध किया । तब खर - दूषण के मर जाने पर रावण उनसे द्वेष करके मारीच की सहायता से उनकी पत्नी सीता को हर ले गया । श्री राम ने उस सीता का पता लगाने के लिए हमारे स्वामी वानरों के राजा सुग्रीव से मित्रता कर ली और उसके भाई बालि को मार उन्हें राज्य का स्वामी बनाया । सुग्रीव ने अपने सहस्रों वानरों को सीता की खोज में पृथ्वी के सब देशों में भेजा है। इधर गृध्रराज आर्य सम्पाति के कहने से मैंने सौ योजन समुद्र पारकर इस लंका में प्रवेश किया और अब जैसा श्री राम ने वर्णन किया , उसी के अनुरूप भगवती सीता को यहां देख रहा हूं । " हनुमान् के अमृत के समान प्रिय वचन सुन , सीता ने मुख पर के केश हटाकर मुंह ऊपर कर भली - भांति हनुमान् को देखा । उदयाचल के निकलते हुए सूर्य के समान उनका तेज था । क्षण- भर को वे अवाक् रह गई। उनकी आंखों से अश्रुधारा बह चली । यह देख हनुमान् उनके और भी निकट आ गए। तब सीता ने कहा - " जो कुछ मैंने सुना , यह यदि स्वप्न नहीं है, सत्य है तो मैं वाणी के स्वामी बृहस्पति को , वज्रधारी इन्द्र को , वाणी के अधिष्ठाता अग्नि को नमस्कार करती हूं । " तब मारुति ने उन्हें प्रणाम करके कहा - “ देवि , मलिन पीताम्बर धारण करने वाली आप कौन हैं ? आपके नेत्र क्यों शोकाश्रु बहा रहे हैं ? देव , असुर, नाग , यक्ष, रक्ष , गन्धर्व, किन्नर के किस कुल को आपने अपने जन्म से धन्य किया है ? आप किनकी कन्या अथवा पत्नी हैं ? हे मातः, आप बारम्बार किस महाभाग का नाम रट रही हैं ? जैसा आपका अलौकिक रूप , तेज है तथा जैसा वेश है उससे तो आप कोई राजकन्या जान पड़ती हैं । दु: ख से आपमें दीनता आ गई है । कहीं आप श्री राम दाशरथि की पत्नी सीता तो नहीं हैं ? " मारुति के ये वचन सुनकर सीता ने कहा - “ भद्र, मैं भूमण्डल के राजाओं में श्रेष्ठ दशरथ की पुत्र - वधू तथा विदेहराज जनक की पुत्री हूं । मेरा नाम सीता है । मैं परम तेजस्वी श्री रामचन्द्र की पत्नी हूं । विवाहोपरान्त बारह वर्ष मैंने राज्यसुख भोगा ; तेरहवां वर्ष आते ही सत्यप्रतिज्ञ राजा दशरथ ने अपने पुत्र श्री रामचन्द्र का राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु उनकी रानी कैकेयी ने श्री राम का वनवास चाहा । सत्यव्रत राजा वचनबद्ध थे। फलत : श्री राम ने पिता का यह आदेश उस राज्याभिषेक से भी बढ़कर माना तथा उसे पूर्णतया स्वीकार कर लिया और तुरन्त राजसी वस्त्र उतार तथा राज्य का चिन्तन छोड़ मुझे अपनी माता को सौंप दिया । परन्तु मैं उनके बिना कैसे रह सकती थी ! इससे मैं उनसे पूर्व ही वन