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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३५०

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जाने को तैयार हो गई । सौमित्र लक्ष्मण भी कुश- वलकल धारण कर भाई के साथ जाने को तैयार हो गए । इस प्रकार हम तीनों ही महाराज को सम्मानित करते हुए तथा दृढ़ता से उत्तम व्रत -पालन करते हुए वन में आ पहुंचे। हम दण्डकारण्य में रहते थे, वहीं से दुरात्मा रावण मुझे हर लाया । अब उसने मेरे जीवन की अवधि नियत कर दी है, जिसमें दो मास शेष रहे हैं । " जब हनुमान् को भली- भांति विश्वास हो गया तो उन्होंने कहा - “ देवि , मैं श्री राम का दूत हूं और आपकी सेवा में उनका संदेश लेकर आया हूं । श्री रामचन्द्र लक्ष्मण सहित सकुलश हैं और मेरे द्वारा आपकी कुशल पूछी है । वेदज्ञ और धर्मज्ञ राम आपकी कुशल जानना चाहते हैं । " हनुमान् के ये वचन सुनकर सीता ने हर्षित होकर कहा - “ हे वीर , मनुष्य जीवित है तो उसे सौ वर्ष बाद भी आनन्द प्राप्त होता है। " यह कहकर वे वहीं भूमि पर बैठ गईं। आत्मघात का विचार त्याग दिया । महाबाहु हनुमान् ने अब उनके निकट आ विधिवत् उनके चरणों में प्रणाम किया। तब सीता ने कुछ सन्देह, कुछ भय से कहा - “ तुम यदि रावण ही के दूत हो और कपट - वेश धारण कर मुझे छलने आए हो तो यह अनुचित है । परन्तु यदि तुम सचमुच श्री राम के दूत हो तो तुम्हारा कल्याण हो ! तुम राम का गुणगान करो । सम्भव है मेरे मनोरथ पूरे होने का समय निकट आ गया हो । " यह कहकर जनककुमारी सीता गहरे सोच में डूब गईं। कभी वे सोचतीं . कहीं यह मेरा मनोविकार ही न हो । पर यह तो स्पष्ट बोल रहा है। संभव है कि यह रावण ही का चर हो । सीता को इस प्रकार सोच-विचार करते देख मारुति ने कहा - “ देवि , मैं निश्चय ही पृथ्वी के अद्वितीय पराक्रमशील सत्यव्रती श्रीराम का दूत हूं । श्री राम तो रात -दिन आपकी रट लगाए रहते हैं । अब आप शोक त्यागिए। शीघ्र ही श्री राम अमिततेज सुग्रीव सहित आपको लेने आएंगे । मैं वानरपति सुग्रीव का मन्त्री हनुमान् हूं , सौ योजन समुद्र को लांघकर और दुरन्त रावण के मस्तक पर अपना चरण रख आपका दर्शन करने इस नगरी में आया हूं । जिसकी शंका आपके हृदय में है, वह मैं नहीं हूं । आप शंका और शोक त्याग दीजिए । " । तब सीता ने कुछ आशंका , कुछ भय , कुछ हर्ष के भाव से अभिभूत हो कहा - " वत्स , तुम्हारी वाणी तो प्रिय है, परन्तु तुम राघवेन्द्र राम और लक्ष्मण की आकृति वर्णन करो , जिससे मेरी शंका मिटे । उनके रूप, अंग -प्रत्यंग का भी तो कुछ बखान करो , जिससे मुझे प्रतीति हो । " सीता के ये वचन सुनकर मारुति ने कहा - “ भगवती , सुनिए ! श्री राम का मुख पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान मनोहर है । उनके विशाल नेत्र पद्म- पत्र के समान हैं । वे जैसे रूपवान् हैं , वैसे उदार भी हैं । सूर्य के समान तेजस्वी, पृथ्वी के समान क्षमाशील और बृहस्पति के समान प्रतिभाशाली हैं । उनका यश इन्द्र से भी बढ़कर है। धनुर्वेद - सहित वेद के ज्ञाता हैं । उनके कन्धे मोटे, भुजा विशाल और कण्ठ शंख के समान है। गले की हड्डी मांस से ढकी है । नेत्रों में कुछ- कुछ लालिमा है , दुन्दुभि के समान उनका कण्ठ- स्वर है । शरीर सुन्दर और चिकना है, वे बड़े प्रतापी हैं । उनके सभी अंग सुडौल हैं , सुदृढ़ हैं । वे श्याम वर्ण के हैं ।