पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उनके नख, तलवे लाल रंग के हैं । वे मधुरभाषी हैं । उनके कण्ठ और उदर में तीन रेखाएं हैं । वे चार हाथ ऊंचे हैं । शरीर में दो - दो की संख्या में चौदह अंग होते हैं , जो सभी परस्पर सम हैं । उनकी चारों दाढ़ें शास्त्रीय लक्षणों से युक्त हैं । वे सिंह, बाघ, हाथी , सांड़ के समान चार प्रकार की चाल चलते हैं । उनके होठ , ठोड़ी और नासिका सभी प्रशस्त हैं । उनके माता-पिता दोनों ही उत्तम कुल के हैं । उनके शरीर में नौ शुभ चिह्न हैं । वे धर्म , अर्थ और काम का उचित रीति से सेवन करने वाले हैं । वे सदा प्रेमपूर्ण वाणी बोलते हैं । ___ “ उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी बड़े तेजस्वी हैं । अनुराग, गुण और रूप में वे श्री राम जैसे ही हैं । उनका रंग स्वर्ण के समान आभायुक्त है । ऐसे ही वे राम -लक्ष्मण दाशरथि हैं , जिनसे हमारे स्वामी सुग्रीव ने अग्नि की साक्षी में मित्रता की है। मैं उन्हीं दशरथ - कुमार राम का दूत तथा सुग्रीव का मन्त्री हूं । वायु- पुत्र हनुमान् हूं । आपके दर्शनों का सर्वप्रथम फल मुझे ही प्राप्त हुआ , यह मेरा सौभाग्य है । अब आप शीघ्र ही लक्ष्मण सहित राघवेन्द्र राम से मिलेंगी। आप शंका और शोक को त्याग दीजिए। ” । हनुमान् के वचन सुनकर सीता को बहुत सान्त्वना मिली । वे आनन्द के आंसू बहाने लगीं । तब हनुमान् ने स्निग्ध स्वर में कहा - “ मातः, यह मेरे पास श्रीराम के नाम की अंकित मुद्रिका है । इसे देखिए , आपकी प्रतीति के लिए उन्होंने मुझे दी थी । " । ____ मुद्रिका को देख और पहचानकर सीता आनन्दविभोर हो उठीं । उन्होंने कहा - “ अरे सौम्य , तेरी जय हो , तेरा पराक्रम श्लाघ्य है , शक्ति अपार है, तू परम मेधावी और चतुर है । तेरा साहस अद्भुत है कि राक्षसों से भरी हुई इस लंका में अकेला ही घुस आया है । तूने असीम सागर को पार करके मुझे जीवनदान दिया है । हे निर्भय , सत्यप्रतिज्ञ , तेरी जय हो ! तेरी बात से मुझे ढाढ़स मिला । भला , भाई लक्ष्मण- सहित श्री राघवेन्द्र कुशल से तो हैं ? अब वे कब प्रलयाग्नि के समान क्रोध करके इस पुरी को भस्म करेंगे ? कह वत्स मारुति राघवेन्द्र अपने में दु: खी तो नहीं रहते ? वे मुझे भूल तो नहीं गए ? कब तक इस दुर्दशा से मेरी मुक्ति होगी ? क्या भरत उनकी सहायता के लिए अपनी अक्षौहिणी भेजेंगे ? वानरेन्द्र सुग्रीव क्या अपने बलिष्ठ वानरों सहित उनकी सहायता को आएंगे? अरे मैं उनके कालरूप बाणों से इस लंका को राक्षसों सहित शीघ्र नष्ट होता देखना चाहती हूं । जब महावीर राघव ने अनायास ही राज्य त्याग मेरे साथ वनगमन किया था , तब उन्हें तनिक भी दु: ख नहीं हुआ था । अब क्या मेरे न रहने पर भी वे उसी प्रकार धैर्य धारण किए हुए हैं ? मैं तो तभी तक जीवित हूं , जब तक उनके दर्शनों की आशा है। " सीता के ये वचन सुनकर हनुमान ने कहा - “ देवि , अब तक उन्हें आपका पता ज्ञात नहीं था । अब वे मुझसे आपके यहां रहने का समाचार पाते ही वानरों की सेनासहित वहां से कूच कर देंगे और अपने बाणों से इस अगाध समुद्र को बांध, लंका को राक्षस - रहित कर देंगे । श्री राम आपके वियोग में महादु: खी हैं । उनका मन आप ही में लगा है । वे रात को भी सीते , सीते , कहकर उठ बैठते हैं । जब कभी भी वे कोई ऐसी वस्तु देखते हैं , जो आपको प्रिय थी , तभी वे आपको पुकारने लगते हैं । वे आठों पहर आपको पाने में यत्नशील हैं । " मारुति के ये वचन सुन सीता ने कहा - “ हे पवनपुत्र , भाग्य ही प्रबल है । अब तुम जाकर उनसे कहो कि वे यहां आने में शीघ्रता करें । मेरे जीवित रहने की अवधि में अब केवल दो मास ही रह गए हैं । यहां एक धर्मात्मा पुरुष भी लंका में रहता है । वह रावण का