पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३५३

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93. पराक्रम का संतुलन प्रबल पराक्रमी मारुति ने भगवती सीता को देख लिया , उन्हें आश्वासन भी दे दिया , उनका संदेश और चिह्न भी प्राप्त कर लिया । परन्तु अभी उनका कार्य पूरा नहीं हुआ । उन्होंने विचार किया कि अब मुझे अपने बल से शत्रु के पराक्रम का संतुलन भी करना चाहिए । परन्तु यह कैसे हो ? इस समय उनके प्राणों का मूल्य बहुत था । उन्हें संदेश श्रीराम को देना था । परन्तु जब उन्होंने जान लिया कि युद्ध अनिवार्य है तो उन्होंने यह भी निर्णय कर लिया कि शत्रु के पराक्रम का संतुलन भी कर लेना परम आवश्यक है । मारुति का साहस असीम था । उसी के अनुसार आगा-पीछा विचार अब वे प्रकट रूप से अशोक वन में विचरण करने लगे । इतना ही नहीं, वे फूलों को तोड़कर फेंकने , क्यारियों को बिगाड़ने , फलों को खाने और सरोवरों को दूषित करने लगे। यह देख अशोक वन की रक्षिका राक्षसियों ने उन्हें घेर लिया । उन्होंने उसे सीता से बातें करते देखा था , पर बातचीत मानवी भाषा में हुई थी , इससे वे कुछ समझीं नहीं । अब उन्होंने उसे घेरकर कहा - “ तू कौन है और कैसे इस रक्षित -निषिद्ध अशोक वन में घुस आया है ? " किन्तु हनुमान् ने उनकी बात पर कान नहीं दिया । उन्होंने उनमें से बहुतों से ठिठोली की , बहुतों को डरा दिया , बहुतों को खिझा दिया । इस पर वे शस्त्र लेकर मारुति पर आघात करने दौड़ीं। तब मारुति ने उनके शस्त्र छीन उन्हें प्रताड़ित कर दिया । वे चीखने चिल्लाने लगीं । इस पर वन के रक्षक किंकर - राक्षस शस्त्र लेकर उन पर टूट पड़े । परन्तु उन्होंने उन सबको भी मार भगाया । अब वे अशोक वन को तेजी से नष्ट- भ्रष्ट करने और मन्दिरों को तोड़ने - फोड़ने लगे। उन्होंने अशोक वन का तोरण तोड़ डाला और वहीं रखे परिघ को हाथ में ले वहां के सब रक्षक राक्षसों को मार डाला । अब वे परिघ को हवा में घुमा - घुमाकर जोर - जोर से गर्जना करने लगे । अशोक वन के इस उत्पात का समाचार शीघ्र ही लंका में फैल गया । चारों ओर से लंका-निवासी राक्षस उसे देखने अशोक वन में आ जुटे । हनुमान् ने रावण के कुलदेवता का मंदिर भी तोड़ डाला तथा वहां आग लगा दी । यह सूचना पा अशोक वन के रक्षकों का अधिपति प्रहस्त - पुत्र जाम्बमाली स्वयं धनुष -बाण ले, रक्त वस्त्र पहन , रथारूढ़ हो , अशोक वन में आया । उसने देखा, एक वानर कुलदेवता के भग्न शिखर पर परिघ हाथ में लिए निर्भय खड़ा है । उसने हनुमान को बाणों से छा दिया । परन्तु उन्होंने उसकी सारी ही चेष्टाओं को विफल कर दिया । हनुमान् सिंहद्वार के कंगूरे पर चढ़ गए। उन्हें देखते ही राक्षसों की सैन्य ने सिंहद्वार को चारों ओर से घेर लिया । जाम्बमाली ने नाराच बाणों की मार से मारुति को विकल कर दिया । तब हनुमान् ने सिंह-विक्रम से छलांग मारकर जाम्बमाली की छाती में वही परिघ वेग से घुमाकर दे मारा, जिससे जाम्बमाली खून वमन करता हुआ भूमि पर गिर गया । महाबली जाम्बमाली को इस प्रकार गिरता देख राक्षस चिल्लाते हुए