पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३५४

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इधर - उधर भागने लगे। तब हनुमान् ने जाम्बमाली को पृथ्वी पर पटककर मार डाला एवं उसका रथ तोड़ घोड़ों को विकलाङ्ग कर दिया । ___ यह सूचना युवराज मेघनाद को दी गई तो उसने विरूपाक्ष, दुर्धर्ष, प्रप्यस और भासकर्ण महारथियों तथा सात मन्त्रीपुत्रों के साथ सैन्य - सहित राजपुत्र अक्षयकुमार को अशोक वन भेजा । हनुमान् बड़े कौशल से इस विकट कटक के साथ युद्ध करने लगे। कभी वे छिप जाते , कभी दूर प्रकट होते , कभी गर्जना करके प्रहार करते , कभी अन्तर्धान होकर विपरीत दिशा में जा निकलते, कभी किसी वृक्ष या प्रासाद पर चढ़ जाते । अवसर पाते ही वे राक्षसों पर टूट पड़ते और उनका प्रहार बचाकर भाग जाते । एक वानर का ऐसा लाघव, साहस तथा बल देख- सुनकर लंका में आतंक छा गया । चारों ओर से उन पर बाण -वर्षा हो रही थी । स्थान -स्थान पर उनके अंग से रक्त निकल रहा था । परन्तु वे दुर्मद राक्षसों से युद्ध करते ही जाते थे। अक्षयकुमार बड़ा धनुर्धर था । लक्ष्यवेध का उसे बड़ा घमण्ड था । उसने तीन बाण हनुमान् के मस्तक पर मारे। इस पर क्रुद्ध हो मारुति उछलकर अक्षयकुमार के रथ पर चढ़ गए । अनेक राक्षस भटों के संरक्षण में रहते हुए भी उन्होंने अक्षयकुमार को रथ से खींचकर भूमि पर ला पटका । मुहूर्त भर दोनों योद्धाओं में मल्ल -युद्ध हुआ । अन्त में हनुमान ने अक्षयकुमार के वक्ष को लातों से रौंद डाला , जिससे वह छटपटाता हुआ मर गया । __ अक्षयकुमार के निधन से राक्षस सैन्य में बड़ा रोष छा गया । सब राक्षस सेनापति , योद्धा शस्त्रों की अंधाधुंध वर्षा करने लगे । परन्तु मारुति फिर अन्तर्धान हो गए । उन्हें ढूंढ़ने को राक्षस इधर - उधर दौड़ने तथा कोलाहल मचाने लगे । सारी ही लंका में वानर का आतंक छा गया । अक्षयकुमार के निधन से संतप्त और असंयत मेघनाद स्वयं रथ पर चढ़ अशोक वन में आया । मेघनाद के अभियान से सारी ही लंका में उद्वेग फैल गया । उसके रथघोष तथा धनुष -टंकार से बारंबार उत्तेजित राक्षस सैन्य जयघोष करने लगे । महाबली इन्द्रजित् ने आते ही हनुमान को बाणों से ढांप लिया । वे जिधर भी जाते , उधर ही बाणों में घिर जाते । इन्द्रजित् का यह हस्तलाघव और कौशल देख मारुति बड़े आश्चर्यचकित हुए । उन्होंने देखा , यही एक अजेय योद्धा है, जिसका साम्मुख्य नहीं किया जा सकता । उन्होंने समय , काल और कूटनीति का आश्रय ले युद्ध त्याग दिया और हाथ उठाकर इन्द्रजित् से कहा - “ हे वीर , मैं दूत हूं और अवध्य हूं। परन्तु मैं अपना अभिप्राय केवल रक्षेन्द्र की सेवा में ही निवेदन कर सकता हूं। मैंने केवल आत्मरक्षार्थ युद्ध किया है - आक्रमण नहीं किया । ” । इन्द्रजित् ने आज्ञा दी कि इस वानर को बांधकर रक्षेन्द्र की सेवा में ले जाया जाए । राक्षस उन्हें रस्सियों में बांधकर पीड़ा देते हुए रक्षेन्द्र की सेवा में ले गए। बहुत - से राक्षस उन पर मुक्कों से प्रहार कर रहे थे, पर हनुमान् बिना प्रतिकार किए चल रह थे। मारुति रावण की सभा में पहुंचे। पुत्र के निधन से रावण क्रोधित और शोकपूरित था । वह स्वर्ण- कुण्डल पहने स्वर्ण-सिंहासन पर आसीन था । उसका मुकुट हीरों, मोतियों और माणिकों की आभा से जगमगा रहा था । वह हलके रेशमी वस्त्र धारण किए था और अंगों पर इत्र - चन्दन का लेप किए सुन्दर प्रतीत हो रहा था । मंत्रियों और सेनापतियों से घिरा हुआ रावण सूर्य के समान तेज का विस्तार कर रहा था । वह स्फटिकमणि के रत्नजटित सिंहासन पर बैठा मन्दराचल के शिखर - सा लग रहा था । उसके सिंहासन को