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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३६९

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दिव्य सुषमा धारण कर रहा था । सबके यथास्थान बैठ जाने पर रावण ने कहा ___ “ सभासदो , संसार में उत्तम , मध्यम और अधम तीन प्रकार के पुरुष होते हैं । जो पुरुष मित्रों , हितैषियों और सम्बन्धियों के परामर्श से काम करते हैं वे उत्तम ; जो अकेले ही सब काम करते हैं , वे मध्यम और कार्य के गुण - दोषों की विवेचना बिना किए हठपूर्वक , करूंगा इसी तरह कहकर किसी हित -बन्धु की आन न मान , कार्य करते हैं , वे अधम कहलाते हैं ।... ___ “ पुरुषों की भांति निश्चय भी तीन प्रकार के होते हैं । जिस निश्चय में नीति - शास्त्र तथा मन्त्र एकमत होता है वह उत्तम ; जिसमें मतभेद हो पर अन्त में बहुमत से निश्चय हो वह मध्यम और जिसमें मन्त्र स्पर्धा करे ,विरोध - भाव प्रकट करे, अन्त तक एकमत होने पर भी अविश्वस्त रहे, वह अधम है । ___ " इसीलिए सभासदो और मन्त्रियो , आपको ज्ञात है कि हमारा शत्रु राम लंका पर अभियान करने के विचार से आगे बढ़ रहा है । इसलिए आप लोग विचार करके सर्वसम्मत निश्चय करें । अब कोई - न - कोई निश्चय कर लेना परमावश्यक हो गया है। अब आप वही सोचें जिसमें राक्षसों का कल्याण हो तथा हमारी लंका को दुर्दिन का मुंह न देखना पड़े । धर्म , अर्थ और काम -विषयक कठिनता उपस्थित होने पर आप ही लोग प्रिय - अप्रिय , लाभ हानि , सुख- दुख , हित - अहित का विचार करने में पूर्ण समर्थ हैं । आप लोगों की सम्मति से प्रारम्भ किया गया मेरा कोई भी काम कभी निष्फल नहीं गया । आप ही के सहयोग से मैं दुर्लभ राज्यलक्ष्मी भोग रहा हूं । मैंने जो काम किया है उसके विषय में भी मैं आप लोगों से पहले सम्मति लेना चाहता था , पर ऐसा न कर सका। अब मैं कहता हूं कि मैं दण्डकारण्य से अपने वैरी दाशरथि राम की पत्नी हर लाया हूं। राम से यद्यपि मुझे भय नहीं है, फिर भी इस सम्बन्ध में विचार तो कर लेना चाहिए । फिर आगामी कार्यक्रम की योजना बनानी चाहिए । आप ही की सहायता से मैंने पृथ्वी को जय किया है तथा देवेन्द्र को बन्दी बनाया है। आप लोग अब भी मेरे सहायक हैं । अब सीता का पता लगाकर दोनों मानवकुमार समुद्र के उस पार आ पहंचे हैं तथा इस पार आने का उद्योग कर रहे हैं । यद्यपि उनका यह प्रयत्न हास्यास्पद है , फिर भी हमें ऐसा उपाय सोच रखना चाहिए , जिससे दोनों भाई मारे जाएं और सीता को लौटाना न पड़े । आपकी ही योजनानुसार मैं कार्य करूंगा। मैं तो यही समझता हूं कि वानरी सेना के लिए समुद्रोल्लंघन अत्यन्त दुष्कर है । फिर भी यदि वह यहां आ भी जाए तो संसार में कोई ऐसी शक्ति मैं नहीं देखता , जो संग्राम में मुझे विजित कर सके । " रावण के ये वचन सुन कुम्भकर्ण ने रोषभरे स्वर में कहा - “ महाराज , जब आपने सीता का हरण किया , तब हमसे सम्मति नहीं ली । यह काम अत्यन्त अनुचित हुआ। हरण से पूर्व ही आपको परामर्श करना उचित था । राजा के जिस कार्य का परिणाम - भोग प्रजा को भोगना पड़े , उसमें उसकी राय लेनी ही चाहिए । जो राजा भली- भांति मंत्रियों से विचार विमर्श करके कार्य करता है, उसे कभी पछताना नहीं पड़ता । पर जो विपरीत कार्य मंत्रियों की सलाह के बिना ही किए जाते हैं , उनका परिणाम सदा दोषयुक्त होता है । जो पुरुष पहले किए जाने वाले काम को पीछे और पीछे किए जाने वाले काम को पहले करता है, वह