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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३८३

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103. संग्राम सूर्योदय के साथ ही रणभेरी का गगनभेदी निनाद करती राम- सैन्य ने चारों ओर से लंका पर आक्रमण कर दिया । लंका में भी युद्ध के धौंसे बजने लगे । चीत्कार करते हुए राक्षस भट बड़े - बड़े शस्त्र ले - लेकर कंगूरों और बुर्जियों पर चढ़ गए। देखते - ही -देखते वानर और राक्षस परस्पर प्रहार करने लगे । उनके शस्त्रपात , हुंकार, ललकार , चीत्कार से जो कोलाहल हुआ , उससे लंका की पौरवधुएं और बालक भयभीत हो भूगर्भो में जा छिपे । बहुत स्त्री - जन ठौर - ठौर रोने लगीं । सहस्रों वानर साहस कर लंका की खाई पारकर कोट-कंगूरों पर जा चढ़े, जिन पर भयानक बाणों और शूलों की वर्षा होने लगी। अपनी सेना को भलीभांति व्यवस्थित कर, वानरराज सुग्रीव ने अपने श्वसुर महाबली सुषेण को साथ लेकर एक बार लंका के चारों ओर घूमकर सब मोर्चों का निरीक्षण किया । लंका से समुद्र - तट तक वानर- ही - वानर दीख पड़ते थे तथा राक्षस सब लंका में घिर गए थे। परन्तु वे प्रलय- काल की भांति सब कोट -कंगूरों पर घूम रहे थे। चारों ओर शस्त्र वर्षा हो रही थी । देखते - ही - देखते असंख्य वानर लंका के कंगूरों पर चढ़कर उन्हें ढाने तथा वहां के रक्षकों से लोहा लेने लगे । राक्षस और वानर लड़ते हए परस्पर लिपटे हए खाई में गिरने लगे । लंका के स्वर्णद्वार और गोपुर ढहने लगे । तीव्र गर्जना करते हुए वानर असह्य वेग से लंका पर पिल पड़े। सेनापति, वीरबाहु , सुबाहु, नल और पनस ने लंका के कोट पर चढ़ एक बुर्ज अधिकृत कर लिया । सहस्रों वानर फुर्ती से उनके चारों ओर एकत्र हो युद्ध करने लगे । महाबाहु, प्रसभ और कुमुद भी उनकी रक्षा के लिए उनकी पीठ पर पहुंच गए। शतबली ने दक्षिण द्वार पर असम विक्रम दिखाया तथा तारा के पिता सुषेण ने पश्चिम द्वार पर धसारा कर दिया । वह बलपूर्वक द्वार भंग कर नगर के मध्यभाग में जा घुसना चाह रहा था । उत्तम द्वार पर राम - लक्ष्मण थे, जिनकी पीठ पर सुग्रीव , विभीषण, धूम्र डटे थे तथा गज , गवाक्ष , गवय , शरभ और गन्धमादन ने अपने - अपने यूथों को श्री राम की अंग -रक्षा में नियुक्त किया । दोनों ओर की जय - जयकार शंख और भेरी के तुमुल नाद तथा घायलों की चीत्कार से कानों के पर्दे फटने लगे । दुन्दुभियां मेघ -गर्जन के समान गरजने लगीं । घोड़ों की हिनहिनाहट , हाथियों की चिंघाड़, रथों की सहस्र घंटिकाओं से पृथ्वी, आकाश और समुद्र भी ध्वनित हो उठे । धीरे- धीरे युद्ध घमासान हो चला , जैसे पहले देवासुर संग्राम हो चुका था । गदा, शक्ति , शूल , परशु हवा में उछलने लगे । पत्थर , वृक्ष आदि की मारामार चली । भिन्दिपाल और शूलों की चोटें चलने लगीं। बड़े-बड़े सेनानायक घोड़ों और हाथियों पर कवच धारण किए आगे बढ़ने लगे । उन्होंने द्वार खोल दिए और सम्मुख युद्ध करने लगे। बराबर के प्रमुख योद्धा द्वन्द्व में रत हो गए । बालि - पुत्र अंगद अमितविक्रम इन्द्रजित् से भिड़ गया । प्रजंघ के साथ सम्पाति , जम्बुमाली के साथ हनुमान् , शत्रुघ्न के साथ विभीषण भिड़