पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४०

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8. दैत्य - दानव तशी - दक्ष की सबसे बड़ी पुत्री दिति थी । उसका वंश दैत्य वंश कहलाया । दिति के मरीचि से चार पुत्र हुए -हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष, वज्रांग और अन्ध्रक। हिरण्यकशिपु के चार पुत्र हुए -प्रह्लाद , अनुह्लाद, ह्लाद और संह्लाद । प्रह्लाद के चार पुत्र हुए - आयुष्मान्, शिवि , वाष्कलि और विरोचन । विरोचन का पुत्र बलि हुआ। बलि के बहुत पुत्र हुए, ज्येष्ठ पुत्र बाण हुआ। बाण अजेय योद्धा था । उसे महाकाल कहते थे। वज्रांग का पुत्र तारक था । ये सब अपने - अपने समय के प्रतापी दैत्य राजा हुए । हिरण्याक्ष के उत्कूर , शकुनि, मूतसंतापन , महानाभि , महाबाहु और कालनाभ ये पराक्रमी पुत्र हुए, जिनके पुत्र - पौत्रों का अनन्त विस्तार हुआ । दक्ष की तीसरी कन्या दनु भी कश्यप को ही दी गई थी । दनु को कश्यप से शम्बर , शंकर , एकत्रक, महाबाहु, तारक , वृषपर्वा, पुलोमा , विप्रचित्तिमय आदि पुत्र हुए । वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से ययाति का ब्याह हुआ। पुलोमा और कालिका नामक दो कन्याएं भी दनु को हुईं, जिनके पृथक् वंश पौलोम और कालिकेय चले । ये सब दानव वंश कहाए । हिरण्यकशिपु की एक बहन थी , जिसका नाम सिंहिका था । वह दानव विप्रचित्ति को ब्याही थी । इसके वंश में शल्य , वातापि, नमुचि , इल्वल , नरक , कालनाभ, चक्तयोधी, राहु आदि तेरह वीर पुत्र हुए। ये सब सैहिकेय कहाए, जिनमें राहु अत्यन्त भयंकर प्रसिद्ध हुआ । निवित और कवच, जो संह्लाद के वंश में थे, तपस्वी हो गए । काश्यप सागर - तट से लेकर गज़नी, हिरात , हरम , कुंजशहर , खुरासान, बुखारा , गलदमन, शंकारा, इक , शाकटारिया , वशपुर , वास्पोरस, कश आदि देशों में इसी दैत्य -वंश का विस्तार हुआ । वृषपर्वा सीरिया का राजा था । हिरण्यकशिपु ने अपनी नई राजधानी हिरण्यपुर बसाई थी , जो एक सम्पन्न नगरी हो गई थी । उधर उसका भाई हिरण्याक्ष बेबीलोन का अधिपति था । दैत्यों और दानवों के और भी राज्य आसपास थे। इस प्रकार समूचे एशिया माइनर का प्रदेश इन दो महाशक्तियों में बंटा हुआ था । एक तरफ दैत्य -दानवों के राज्य थे, दूसरी ओर आदित्यों के , जो देव कहाते थे। बल के संतुलन में दैत्यों ही का पासा ऊंचा था , क्योंकि एक तो वे ज्येष्ठ थे, दूसरे उनके राज्य सम्पन्न थे। उनका संगठन अद्वितीय था । परन्तु इस भूमि में दो जातियां और भी निवास करती थीं : एक गरुड़ और दूसरी नाग । दिति , अदिति , दनु - इन तीन स्त्रियों के अतिरिक्त कश्यप की दो स्त्रियां और थीं - एक कद्रू, दूसरी विनता । कद्रू की संतानों में छब्बीस नाग वंश चले । नागों में शेष , वासुकि , कर्कोट , तक्षक, धृतराष्ट्र, धनंजय , महानील, अश्वतर , पुष्पदन्त , शंखरोमा आदि प्रबल राजा थे। विनता के दो पुत्र थे- गरुड़ और अरुण । अरुण के दो पुत्र हुए – सम्पाति और जटायु । इनके भी अनेक पुत्र हुए ।