पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४१७

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इन दिव्यास्त्रों से उसका वध करो । इन महास्त्रों के कारण ही वह रावणि अदृश्य रहकर चहुंमुखी बाण -वर्षा करता है, नागपाश में दुर्जय शत्रु को भी बांध लेता है । अब यही कौशल तुम भी कर सकोगे। परन्तु राघव , दिव्य उमा का तुम्हें एक गुप्त संकेत है। उमा ने कहा है कि रावणि का निरस्त्र ही वध सम्भव है। दिव्यास्त्रों के रहते उसका वध नहीं होगा। सो हे परंतप , जैसे बने , आज तुम उसका निरस्त्र वध करो। यह रहस्य मत भूलो । इसके अतिरिक्त रावण से तुम बिना रथ के युद्ध नहीं कर सकते थे, सो देवेन्द्र की आज्ञा से इस दिव्य रथ सहित संग्राम की समाप्ति तक मैं तुम्हारी सेवा में उपस्थित हूं । अब तुम प्रसन्न होकर देवों का प्रिय करो। " राम ने कहा - “ देवेन्द्र और अम्ब के प्रति मैं अज्ञ कैसे कृतज्ञता प्रकट करूं ? " राम ने धनुष हाथ में लेकर देखा और फिर शोकपूरित स्वर में कहा, "मैंने वैदेही -स्वयंवर में अपने बाहुबल से हर - धनु भंग किया था । किन्तु आज मैं इस धनुष को खींचने में भी असमर्थ हूं । " इस समय लक्ष्मण और विभीषण वहां आ पहुंचे। राघवेन्द्र ने उनसे देवदूत के आगमन का समाचार कहा, देवेन्द्र और हेमवती के संदेश- संकेत कहे। फिर वह दिव्य धनुष उन्हें दिखाया । उसे खींचने की अपनी असामर्थ्य पर खिन्न हुए । इस पर वीर - दर्प से सौमित्र ने धनुष हाथ में ले , क्षण- भर ही में उसे खींच टंकारा , जिससे दसों दिशाएं ध्वनित हो गईं । राम ने भाई को हृदय से लगाकर कहा - “ भाई , तू ही अब डूबते रघुवंश का सहारा है । किन्तु इस राक्षसपुरी में अकेले राक्षसराज विभीषण ही हमारी नौका के खिवैया हैं । न जाने आज सूर्य उदय होने पर भूतल पर कौन - सा दृश्य देखेंगे। "