पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४२५

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116. कूट योग उषा का उदय हो रहा था । राम - कटक सज रहा था । पर राम सब सेनानियों सहित व्याकुल भाव से बैठे परामर्श में मग्न थे। विभीषण, सुग्रीव, अंगद , जाम्बवन्त , नल , नील , गय, द्विपद, ऋक्ष, वृषभ सभी सेनानायक , गुल्मपति राघवेन्द्र को घेरे , आज होनेवाले काल समर के सम्बन्ध में परामर्श कर रहे थे। लंका में युद्ध के नगाड़े गड़गड़ा रहे थे। राक्षसों के जयनिनाद और हर्षोल्लास सुन - सुनकर वानर- सैन्य के मन में शंका का भूत बैठ रहा था । राम ने कहा - “मित्र रक्षेन्द्र, यह तो असाध्य साधन है। भला यह कैसे सम्भव हो सकता है कि दुर्जय मेघनाद का निरस्त्र वध किया जाए? ऐसा सुयोग हम पा ही कैसे सकते हैं ? हाय , यह हमारा दुर्भाग्य ही समझना चाहिए कि सुरेन्द्र का अनुग्रह और उमा , हेमवती का प्रसाद पाकर भी हम उससे लाभान्वित नहीं हो रहे । रक्षेन्द्र , कहो, अब तुम्हीं रघुवंश की डूबती नाव को पार लगा सकते हो । ” गदापाणि विभीषण गम्भीर सोच में निमग्न हो गए । इसी समय वानर - सैन्य को विस्मित करते हुए मारुति सरमा को राम के सम्मुख ले आए। उन्होंने कहा- “ यह राक्षसबाला आपके पादपद्म में कुछ कूट निवेदन करना चाहती है। ” राम ने कहा - “ कह भद्रे , मैं तेरा क्या प्रिय कर सकता हूं ! सरमा ने प्रथम राम - लक्ष्मण को , फिर विभीषण को प्रणाम करके कहा - “धर्मात्मा राक्षसराज विभीषण मुझे पहचानते हैं , पहले ये साक्षी दें तो मैं कूट निवेदन करूं । " विभीषण ने कहा - “मैं तुझे पहचानता हूं, तू सरमा किंकरी है । मुझे स्मरण होता है , तू अशोक वन की रक्षिका राक्षसी सैन्य की अधिष्ठात्री है। " ___ " और वैदेही की किंकरी भी । " “ यह भी मैंने सुना था , भगवती से सौहार्दरखने के कारण राक्षसेन्द्र की धर्षणा भी पा चुकी है । " " तो राघवेन्द्र प्रसन्न हों और किंकरी के वचन पर विश्वास करें । क्या मैं यहां सबके समक्ष कूट निवेदन करूं ? " “ कह भद्रे, ये सब हमारे विश्वस्त सेनापति हैं । " " तो रथीन्द्र मेघनाद इस क्षण एकाकी निकुम्भला यज्ञागार में वैश्वानर की पूजा कर रहा है। राघवेन्द्र साहस करें तो इसी क्षण उसका निरस्त्र वध कर सकते हैं । बस यह क्षण चूके तो चूके। ” यह सुनते ही सौमित्र उछलकर खड़े हो गए। उन्होंने कहा " हे कल्याणी, क्या तू निकुम्भला यज्ञागार का मार्ग जानती है? क्या तू मार्ग बताकर अपना अनुग्रह शतगुण कर सकती है ? " “ गदापाणि राक्षसशिरोमणि धर्मात्मा विभीषण को आपका वरद सान्निध्य प्राप्त है। ये चाहें तो आपको गुप्त रूप से अगम्य यज्ञागार में सशस्त्र , निरस्त्र एकाकी रावणि के