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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४२७

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117. जनरव कनक-लंका में आनन्दोत्सव होने लगे । दुन्दुभियां गड़गड़ाने लगीं । वीर वाहिनियां सज - सजकर चतुष्पदों पर एकत्र होने लगीं । घर - घर बाजे बजने लगे, नर्तकियां नाचने लगीं । गन्धर्वियां गान करतीं चतुष्पदों को पादाघात से मुखरित करने लगीं। आज का प्रभात लंका में आशा और आनन्द के प्रवाह को लेकर आया था । नागरिक परस्पर प्रसन्न मुद्रा में बातें कर रहे थे। गृहस्थों ने अपने गृहद्वार फूलों से सजा दिए , खिड़कियों में मंगल दीप रख दिए। गृहाग्र में रंग -बिरंगी ध्वजाएं फहराने लगीं । अपने सौरभ से पुरी को आपूर्यमाण कर मलय - मारुत पुष्पगन्ध आमोद में व्याप्त हो गया । रात - भर लंका ने जागरण किया , यज्ञानुष्ठान किए, वेदध्वनि की । वीरेन्द्र कल राम को मारेगा , लक्ष्मण का भी वध करेगा । राक्षस - दल वानर - कटक को मार - मारकर समुद्र के अतल तल में डुबो देगा । लंका के नागरिक आशा के झकोरों में झूम रहे थे। राज - प्रासाद के प्रांगण में सैन्य सज्जित हो रही थी । धौंसे गड़गड़ा रहे थे। हाथी , घोड़े, पैदल पंक्ति बांधे खड़े थे। सेनानायक तालजंघ गुल्मों का व्यूह रच रहा था । विरूपाक्ष नगर -रक्षा का विधान रच रहा था । खिड़कियों से पौरवधुएं पुष्प और लाजा -वर्षा कर रही थीं । हाथी चिंघाड़ रहे थे। घोड़े हिनहिना रहे थे। मन्दिरों में वेदगान हो रहा था । तोरण पर प्रभात- राग अलाप ले रहा था । पुरजन इधर - उधर आते जाते बातें कर रहे थे। एक ने कहा - " जल्दी कर मित्र, प्राचीर पर चढ़ा जाए, जिससे आज का युद्ध देखने को मिल जाए। फिर स्थान नहीं मिलेगा। " दूसरे ने कहा - “ अरे , अभी ठहर , अरिन्दम इन्द्रजित् अभी भगवान् वैश्वानर की उपासना कर रहा है। वह अभी आकर सम्पूर्ण राक्षस-व्यूह का निरीक्षण करेगा। देखता नहीं , तालजंघ महानायक कैसी तत्परता से व्यूह -रचना कर रहा है ! " तीसरे ने कहा- “ आज भिक्षुक राम का निस्तार नहीं है। कुलद्रोही महाराज विभीषण भी आज अपने कर्म -फल भोगेंगे। " चौथे ने कहा - “ अरे , वह मायावी राम तो मर - मरकर भी जी उठता है। देवगण उसके पक्ष में हैं । ” _ “ तो क्या हुआ, देवराज इन्द्र के वज्र को व्यर्थ करने वाले अरिन्दम रक्षराजपुत्र आज काल - पुरुष की भांति सब देवताओं के प्रयत्न व्यर्थ करेंगे। चलो, प्राचीर पर चढ़कर देखें । ” ___ “प्राचीर पर चढ़कर क्या होगा ! अरिन्दम इन्द्रजित् तो पल - भर ही में राम को मार डालेगा । " “ सच कहते हो। जैसे अग्नि सूखी घास को भस्म करती है, वैसे ही युवराज शत्रु संहार करता है । उस - सा योद्धा पृथ्वी पर और नहीं है। " अरे , देखते रहो, अभी एक मुहूर्त में वह उन दोनों वनवासियों को मार, अधम