पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४३४

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वध करूंगा, नहीं तो लंका में नहीं लौटूंगा । अरे , मेघनाद का वध हो गया , यह सुनकर कौन राक्षस जीता रहना चाहेगा ? सब कोई चलो , सम्मुख समर में पुत्र का शत्रु के रक्त से तर्पण करें । ” रावण ने अश्रुमोचन किए। मन्त्रिगणों ने सिर झुका लिए । सेना ने सिंहनाद किया । दानवनन्दिनी सुलोचना प्रमिला ने स्नानादि से निवृत्त हो अलंकार धारण किए। दासियों ने प्रसाधन किया । एक - एक कर उसके अंगों से अलंकार खिसकने लगे। उसने कहा - “ अरी सखियो, यह क्या हुआ ? मणिमय भुजबन्ध पहनने से मेरा हाथ क्यों दुखने लगा ? अंग से अलंकार क्यों खिसकने लगे ? यह मेरा दाहिना नेत्र फड़का! अरी वासन्ती , वीरेन्द्र चूड़ामणि यज्ञागार में वैश्वानर की पूजा कर रहे हैं । तू अभी जाकर उनकी सेवा में मुझ दासी का निवेदन कर कि आज वे रणांगण में न जाएं । आज न जाने क्या हो , मेरा मन तो डूबा जा रहा है । ” - वासन्ती ने कहा - “ देवि, तनिक सुनो तो, यह आर्तनाद कैसा है? कौन रो रहा है? अरे , शत -सहस्र कण्ठ रो रहे हैं ? " ___ “ सुन रही हूं । सेना का हुंकार बन्द हो गया , दुन्दुभि की गर्जना विलीन हो गई , श्रृंगी-नाद नहीं सुनाई दे रहा । हाहाकार और रोदन - ध्वनि बढ़ती जा रही है। अरे , ये सब पुरवासी क्यों रो रहे हैं ? रथीन्द्र के रहते लंका पर अब यह कौन - सी विपत्ति आई है । चलू , देखं तो महिषी के मन्दिर में क्या हो रहा है। " अधीर हो वह अर्धवस्त्रालंकार पहने ही सखियों सहित , महिषी सदन की ओर गिरती - पड़ती चली , पीछे-पीछे सब सखियां , जहां वातावरण घोर क्रन्दन से कम्पित हो रहा था , जहां रथीन्द्र के निधन - समाचार शत - सहस्र मुखों के हाहाकार के साथ निकल रहे थे। पतिप्राणा साध्वी प्रमिला सुन्दरी, दानवराज - नन्दिनी प्राणाधिक पति का निधन सुन छिन्न लता की भांति मूर्छित हो भूमि पर गिर गई ।