पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४४९

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124. विशल्यासंजीवनी उस दिन काल - समर में राम के अतिरिक्त किसी भांति सग्रीव, कपिध्वज हनमन्त और रक्षपति विभीषण, देवकुमार कार्तिकेय और वज्रपाणि इन्द्र ; ये ही पांच अक्षत बचे थे। विभीषण ने भगीरथ प्रयत्न से घूम - घूमकर सान्त्वना देकर वानरों को एकत्रित किया । वे सब राम के चारों और बैठकर विलाप करने लगे । ___ अंगद, नील, द्विविद , शरभ , जाम्बवान् , सुषेण, मैन्द , नील , ज्योतिर्मुख आदि वीर शिरोमणि शरबिद्ध , क्षत -विक्षत भूमि पर अचेत पड़े थे। विभीषण ने पराक्रमी वीर शिरोमणि सुषेण को सैकड़ों बाणों से विद्ध पड़े सर्प की भांति भारी -भारी सांस लेते देखा । उन्हें चेताकर कहा - “ बड़ी प्रसन्नता की बात है कि आपका जीवन बच गया । " " हनुमान तो जीवित हैं ? " " हनुमान् अक्षत हैं । ” " बड़ी बात है। यदि हनुमान् जीवित हैं , तो सारी ही वानर -सैन्य बच गई समझिए। ” “किन्तु सौमित्रि... ” विभीषण के नेत्रों में जल भर आया , कण्ठ अवरुद्ध हो गया । “ क्या , नहीं रहे ? " " अभी जीवित हैं , परन्तु मुमूर्षु- . __ " तो मुझे आप सौमित्रि के निकट ले चलिए। ” सुषेण बड़े कष्ट से उठकर विभीषण के सहारे चलकर वहां आए, जहां रणांगण में सौमित्रि बेसुध पड़े थे। श्री राम लक्ष्मण के निश्चल , रक्तप्लुत शरीर को बाहुओं में समेटे बैठे थे। उन्होंने अश्रुपूरित नेत्रों से विभीषण को देखकर विलाप करते हुए कहा - “ अयं मे भ्राता समरश्लाघी शुभलक्षणो लक्ष्मण: । इमं प्राणैः प्रियतरं वीरं शोणितार्द्र पश्यत : पर्याकुलो मे मन :। यदि भ्राता मे पंचत्वमापन्न :, किं मे प्राणैः सुखेन वा ! हा , लज्जतीव मे वीर्य, भ्रश्यतीव धनु : व्यवसीदन्ति सायका:। देशे - देशे कलत्राणि , देशे च बान्धवाः। तं देश नैव पश्यामि यत्र भ्राता सहोदरः । हा , किन्तु राज्येन लक्ष्मणेन बिना ? कथ वक्ष्याम्यहं त्वम्बां सुमित्रां ? हा ! हा ! " सुषेण ने ध्यान से सौमित्रि को देखकर कहा “न -न लक्ष्मीवर्धनो लक्ष्मण : पंचत्वमापन्नः । नास्य वक्त्रं विकृतम् , न च श्यामत्वमागतम् । नरशार्दूल ! इमां वैक्लव्यकारिणी बुद्धिं त्यज ! " इतना कह उन्होंने हनुमान् की ओर देखा और कहा “ हे वीर , यह तेरे पराक्रम का काल उपस्थित है। तू पराक्रम कर , महोदय पर्वत पर जा । उसके गन्धमादन नामक दक्षिण देवशृंग पर विशल्या संजीवनी महौषध है। वह रात को प्रज्वलित रहती है । औषध की प्रदीप्ति के कारण वहां कभी रात्रि नहीं होती । वहीं भगवान् अत्रि का पुनीत धाम है । उसे तू ला और सौमित्रि सहित वानर यूथपतियों को