पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्राणदान दे! " हनुमान् ने नेत्रों में जल भरकर राम के चरण छुए, परिक्रमा की । पवनकुमार हनुमान् तुरन्त ही वेग से संजीवनी बूटी लाने को चल दिए और सुग्रीव सहित विभीषण लक्ष्मण तथा अन्य क्षत वानरों की यत्न से रक्षा करने लगे । पीड़ित और व्यथित वानर विभीषण के धैर्य -वचन और संजीवनी बूटी का माहात्म्य सुन आशा और आशंका से अभिभूत हो हनुमन्त का आसरा ताकने लगे। विभीषण चिन्ता करके क्षितिज की ओर निहारने लगे । इसी समय हनुमान् संजीवनी बूटी लेकर आ गए। राक्षसेन्द्र ने उन्हें कण्ठ से लगा लिया । सुषेण की यत्न-विधि से विशल्या संजीवनी द्वारा लक्ष्मण सहित सभी वानर विशल्य होकर नीरुज हो गए । एक बार फिर आशा और आनन्द की लहर वानर - सैन्य में व्याप गई। राम ने हनुमान् को हृदय से लगाकर अश्रुपात किया । वानरेन्द्रों को ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे सब सोकर जगे हों । ____ अब सब वानर चैतन्य हो क्रोध और हर्ष में भरकर ज़ोर - ज़ोर से हर्षनाद करने और राक्षसों से बदला लेने की विकट चेष्टाएं करने लगे । सुग्रीव और विभीषण ने भगीरथ प्रयत्न से सब कटक को व्यवस्थित किया । सब राम को घेर भावी युद्ध की योजनाओं पर विचार करने बैठे । वानर - सैन्य में युद्ध के धौंसे बज उठे । उन्होंने फिर लंका के चारों ओर अपने सुदृढ़ मोर्चे बांध लिए।