हैं । वज्रनाभ आपका तो स्वागत ही करेगा । " “नहीं तो क्या ! और जब मैं उससे कहूंगा कि यह दिक्पति धनेश कुबेर का अनुज दशानन रावण है, तो वह ससम्भ्रम तुझे अभ्युत्थान देगा। " “ स्वस्ति , तो हमारे सर्वोपरि अस्त्र ये मद्य -भाण्ड हैं । " “ ये रत्नमणि भी अस्त्र ही समझ, पुत्र ! जब हम यह सब स्वर्ण, रत्नमणि और मद्य भाण्ड उसे मैत्रीभाव से भेंट करेंगे, तो आनन्द से उन्मत्त होकर वह हमारी ही लाई हुई सुरा का सब सचिव - सहित पान करेगा । इन नागों को हमारे मसालेदार मद्य बहुत प्रिय हैं , और मेरी बनाई हुई सुवासित मद्य जो एक बार पी लेगा , उसे भूलेगा नहीं , वह असंयत हो जाएगा । बस, हम ज्योंही उन सबको मदमत्त और असावधान देखेंगे, अपने कार्य सम्पूर्ण कर लेंगे। " “ इससे उत्तम युक्ति क्या हो सकती है, मातामह! किन्तु आप क्या नागपति वज्रनाभ को पहचानते हैं ? " " न , उसका पिता मेरा कृपापात्र तथा मित्र था , उसकी एक बार असुरों के विरुद्ध सम्मुख युद्ध में मैंने सहायता की थी । वज्रनाभ यह जानता है और हमें मित्र - भाव से आया जान , हमारा सत्कार करेगा । " ___ " तो हम उसे जय करके मित्र ही बना लेंगे, मातामह ! " " जैसा संयोग होगा । वध भी करना पड़ सकता है। देख , यह सम्मुख ही तो नगरद्वार है । अब सब कोई सावधान हो जाओ। मैं आगे चलकर द्वार खुलवाता हूं। " । वृद्ध असुर आगे बढ़ा। अवरुद्ध द्वार पर आकर उसने पुकारा - " अनवरुद्ध कपाटं द्वारं देहि , द्वारं देहि , द्वारं देहि ! " द्वारपाल ने गोखे से सिर निकालकर कहा - “ कौन हो तुम ? " " नागराज के सम्माननीय अतिथि हैं । क्या तू नहीं जानता , आज नागराज हमारी अभ्यर्थना करेगा ? बोल , तुझे आदेश मिला है ? " । __ “ आदेश नहीं मिला है ।चिह्न है ? " । “चिह्र भी देख ले। ” बूढ़े दैत्य ने बगल से एक नरसिंहा निकालकर जोर से फूंका । इधर - उधर छिपे बहुत - से दैत्यों ने आकर उस सुभट का सिर काट लिया और द्वार खोल दिया । सभी दैत्य नगर में घुस गए। द्वार -अवरोधकर्ता युद्ध करने लगे। परन्तु रावण द्वार पर रुका नहीं , वेग से अपने सुभटों को संग लिए राजप्रासाद की ओर बढ़ता चला गया । जो दो - चार नाग सुभट द्वार - रक्षा में उपस्थित थे, उन्हें मारकर असुरों ने द्वार अधिकृत कर लिया । किसी को यह बात कानों - कान न सुनाई दी । अब भेरी और नगाड़े बजाते हुए दैत्य राजद्वार में घुस गए । प्रासाद में किसी ने उनका विरोध नहीं किया । कुछ इधर - उधर बिखरकर भीड़ में मिल गए। प्रासाद में बहुत भीड़ - भाड़ थी । बहुत लोग प्रासाद में आ - जा रहे थे। लोग ठौर -ठौर मद्यपान करके कोलाहल मचा रहे थे। ये असुर भी जहां - तहां इनमें घुसकर कोलाहल मचाने और मद्य पीने -पिलाने लगे । वास्तव में आज नाग संवत्सर - समारोह मना रहे थे। राजप्रासाद खूब सजा था । विविध वाद्यों के निनाद और लोगों के शोर से कान नहीं दिए जाते थे। सभा - भवन और मण्डप खूब
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