सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:वरदान.djvu/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०७
कमला के नाम विरजन के पत्र
 

अस्पताल बना हुआ है। काशी भर का भविष्य प्रवचन प्रमाणित हुआ। होली की ज्वाला का मेद प्रकट हो गया। खेती की यह दशा और लगान उगाही जा रही है। बड़ी विपत्ति का सामना है। मार पीट, गाली, अप- शब्द सभी साधनो से काम लिया जा रहा है। दीनो पर यह दैवी कोप!

तुम्हारी,
 
विरजन,
 

( ६ )

‘मेरे प्राणाधिक प्रियतम'
मझगाँव
 

पूरे पन्द्रह दिन के पश्चात् तुमने विरजन की सुधि ली। पत्र को बारम्बार पढा। तुम्हारा पत्र क्लाये बिना नहीं मानता। मैं यों भी बहुत रोया करती हूॅ। तुमको किन-किन बातों की सुधि दिलाऊँ? मेरा हृदय ऐसा निर्बल है कि जब कभी इन बातों की ओर ध्यान जाता है तो विचित्र दशा हो जाती है। गर्मी सी लगती है। एक बड़ी व्यग्र करनेवाली, बड़ी स्वादिष्ट, बहुत रुलानेवाली, बहुत दुराशापूर्ण वेदना उत्पन्न होती है। जानता हूँ कि तुम नहीं आ रहे हो और नहीं पाओगे; पर बार बार द्वार पर जाकर खड़ी हो जाती हूॅ कि आ तो नहीं गये।

कल सायकाल यहाॅ एक बड़ा चित्ताकर्षक प्रहसन देखने में आया। यह धोबियों का नाच था। पन्द्रह-बीस मनुष्यों का एक समुदाय था। उसमें एक नवयुवक श्वेत पेशवाज पहिने कमर में असंख्य घटियाॅ बाॅधे, पॉव में घूॅघरू पहिने, सिर पर लाल टोपी रखे नाच रहा था। जब पुरुष नाचता था तो मृदंग बजने लगती थी। ज्ञात हुआ कि ये लोग होली का पुरस्कार मॉगने आये है। यह जाति पुरस्कार खूब लेती है। आपके यहाँ कोई काम-काज पड़े, उन्हें पुरस्कार दीजिये, और उनके यहाॅ कोई काम-काज पड़े, तो भी उन्हे पारितोषिक मिलना चाहिए। ये लोग नाचते समय गीत नहीं गाते। इनका गाना इनकी कविता है। पेशवाजबाला पुरुष दंग पर हाथ रखकर एक विरहा कहता है। दूसरा पुरुप सामने से