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वरदान
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निदान, कमलाचरण ने अपने मन-बहलाव का एक ढग सोच ही निकाला। जिस समय से उसे कुछ ज्ञान हुआ, तभी से उसे सौन्दर्य- वाटिका में रमण करने की चाट पड़ी थी, सौन्दर्योपासना उसका स्वभाव हो गयी थी। यह उसके लिए ऐसी ही अनिवार्य थी, जैसे शरीर रक्षा के लिए भोजन बोर्डिङ्ग-हाउस से मिली हुई एक सेठ की वाटिका थी और उसकी देख भाल के लिए एक माली नौकर था। उस माली के सरयूदेवी नाम की एक कुंवारी लड़की थी। यद्यपि वह परम सुन्दरी न थी, तथापि कमला सौन्दर्य का इतना इच्छुक न था, जितना किसी विनोद की सामग्री का। कोई भी स्त्री, जिसके शरीर पर यौवन की झलक हो, उसका मन बहलाने के लिए समुचित थो। कमला इस लड़की पर डोरे डालने लगा। सन्ध्या समय निरन्तर वाटिका की पटरियों पर टहलता हुआ दिखायी देता। और लड़के तो मैदान म कसरत करते, पर कमलाचरण वाटिका में आकर ताक झाँक किया करता। धीरे-धारे सरयूदेवी से परिचय हो गया। वह उससे गजरे मोल लेता और चौगुना मूल्य देता। माली को त्योहार के समय सबसे अधिक त्योहारी कमलाचरण ही से मिलती। यहाँ तक कि सरयूदेवी उसके प्रीतिरूपी जाल का आखेट हो गयी और दो एक वार अन्धकार के पर्दे मे परस्पर सयोग भी हो गया।

एक दिन सन्ध्या का समय था, सब विद्यार्थी सैर को गये हुए थे, कमला अकेला वाटिका में टहलता था और रह रहकर माली के झोपड़े की ओर झाॅकता था। अचानक झोपड़े मे से सरयूदेवी ने उसे सकेत द्वारा बुलाया। कमला बड़ी शीघ्रता से भीतर घुस गया। आज सरयूदेवी ने मलमल की साड़ी पहनी थी, जो कमलाबावू का उपहार थी। सिर में सुगन्धित तेल डाला था, जो कमलाबाबू बनारस से लाये थे और एक छींट का सलूका पहने हुई थी, जो बाबू साहब ने उसके लिए बनवा दिया था। प्याज वह अपनी दृष्टि में परम सुन्दरी प्रतीत होती थी, नहीं तो कमला-जैसा धनी मनुष्य उस पर क्या प्राण देता? कमला खटाले पर बैठा हुआ