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वरदान
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हजूर कहकर बाते करता था। वही कमला आज उसी माली के सम्मुख इस प्रकार जान लेकर भाग जाता है। पाप अग्नि का वह कुण्ड है जो आदर और मान, साहस और धैर्य को क्षण-भर में जलाकर भस्म कर देता है।

कमलाचरण वृक्षों और लताओं की ओट में दौड़ता हुआ फाटक से बाहर निकला। सड़कपर ताॅगा जा रहा था, उस पर जा बैठा और हाँफते- हाँफते अशक्त होकर गाड़ी के पटरे पर गिर पड़ा। यद्यपि माली ने फाटक तक भी पीछा न किया था, तथापि कमला प्रत्येक आने जानेवाले पर चौक-चौंककर दृष्टि डालता था, मानों सारा ससार उसका शत्रु हो गया है । दुर्भाग्य ने एक और गुल खिलाया। स्टेशन पर पहुॅचते ही घबराहट का मारा गाड़ी में जाकर बैठ तो गया, परन्तु उसे टिकट लेने को सुधि ही न रही और न उसे यह खबर थी कि मैं किधर जा रहा हूॅ। वह इस समय इस नगर से भागना चाहता था, चाहे कहीं हो। कुछ दूर चला था कि एक अंग्रेज अफसर लालटेन लिये आता दिखायी दिया। उसके सग एक सिपाही भी था। वह यात्रियों का टिकट देखता चला आता था, परन्तु कमला ने जाना कि कोई पुलिस का अफसर है। भय के मारे हाथ-पाँव सनसनाने लगे, कलेजा घड़कने लगा। जब तक अंग्रेज दूसरी गाड़ियों में जॉच करता रहा, तब तक तो वह कलेजा कड़ा किये किसी प्रकार बैठा रहा, परन्तु ज्योंही उसके कमरे का फाटक खुला, कमला के हाथ पाँव फूल गये, नेत्रों के सामने अँधेरा छा गया, उतावलेपन से दूसरी ओर का किवाड़ खोलकर चलती हुई रेलगाड़ी पर से नीचे कूद पड़ा । सिपाही और रेलवाले साहब ने उसे इस प्रकार कूदते देखा तो समझा कि कोई अभ्यस्त डाकू है, मारे हर्ष के फूले न समाये कि पारितोपिक अलग मिलेगा और वेतनोन्नति अलग होगी, झट लाल बत्ती दिखायी। तनिक देर में गाड़ी रुक गयी। अब गार्ड सिपाही और टिकटघाले साहब कुछ अन्य मनुष्यों के सहित गाड़ी से उतर पड़े और लालटेन ले लेकर इधर-उधर देखने लगे। किसी ने कहा―‘अब उसकी धूल भी न मिलेगी, पक्का डकैत था।' कोई बोला―‘इन लोगों को कालीज