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दुःख दशा
 

का इष्ट रहता है, जो कुछ न कर दिखायें, थोड़ा है।' परन्तु गार्ड आगे ही बढ़ता गया। वेतन-वृद्धि की आशा उसे आगे ही लिये जाती थी। यहाँ तक कि वह उस स्थान पर जा पहुॅचा, जहाँ कमला गाड़ी से कूदा था। इतने में सिपाही ने खड्डे की ओर संकेत करके कहा―‘देखो, वह श्वेत रग की क्या वस्तु है? मुझे तो कोई मनुष्य-सा प्रतीत होता है।' और लोगों ने देखा और विश्वास हो गया कि अवश्य ही दुष्ट डाकू यहाँ छिपा हुआ है, चलकर उसको घेर लो ताकि कहीं निकलने न पावे, तनिक सावधान रहना। डाकू प्राण पर खेल जाते हैं। गार्ड साहब ने पिस्तौल सँभाली, मियाॅ सिपाही ने लाठी तानी। कई यात्रियों ने जूते उतारकर हाथ मे लिये कि कहीं आक्रमण कर बैठा तो भागने मे सुमीता होगा। दो मनुष्यों ने ढेले उठा लिये कि दूर ही से लक्ष्य करेंगे। डाकू के निकट कौन जाय, किसे जी भारी है? परन्तु जब लोगों ने समीप जाकर देखा तो न डाकू था, न था डाकू का भाई; किन्तु एक सभ्य-स्वरूप, सुन्दर वर्ण, छरहरे शरीर का नवयुवक पृथ्वी पर आधे मुख पड़ा है और उसके नाक और कान से धीरे धीरे रुधिर वह रहा है।

कमला ने इधर सॉस तोड़ी और विरजन एक भयानक स्वप्न देखकर चौंक पड़ी। सरयूदेवी ने विरजन का सोहाग लूट लिया।

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दुःख दशा

सौभाग्यवती स्त्री के लिए उसका पति संसार की सबसे प्यारी वस्तु होती है। वह उसी के लिए जीती है और उसी के लिए मरती है। उसका हँसना -बोलना उसी के प्रसन्न करने के लिए और उसका बनाव-श्रृंगार उसी को लुभाने के लिए होता है। उसका सोहाग उसका जीवन है और सोहाग का उठ जाना उसके जीवन का अन्त है।