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पृष्ठ:वरदान.djvu/१७७

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वरदान
१६४
 

विरजन―सोहाग का जोड़ा केसरिया रंग का होता है।

माधवी―मेरा श्वेत रहेगा।

विरजन―तुझे चन्द्रहार बहुत भाता था। मैं अपना दे दूॅगी।

माधवी―हार के स्थान पर कएठी दे देना।

विरजन―कैसी बातें कर रही हैं?

माधवी―अपने श्रृङ्गार की

विरजन―तेरी बातें समझ में नहीं आती। तू इस समय इतनी उदास क्यों है? तूने इस रल के लिए कैसी-कैसी तपस्याएँ कीं, कैसा-कैसा योग साधा, कैसे-कैसे व्रत किये और आज तुझे जब वह रत्न मिल गया तो हर्षित नहीं देख पड़ती।

माधवी―तुम विवाह ही बातचीत करती हो इससे मुझे दुख होता है।

विरजन―यही तो प्रसन्न होने की बात है।

माधवी―बहिन। मेरे भाग्य में वह प्रसन्नता लिखी ही नहीं। जो पक्षी बादलों में घोंसला बनाना चाहता है, वह सर्वदा डालियों पर रहता है। मैंने निर्णय कर लिया है कि जीवन का यह शेष समय इसी प्रकार प्रेम का सपना देखने में काट दूँगी।

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[ २५ ]

विदाई

दूसरे दिन बालाजी स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर राजा धर्मसिंह की प्रतीक्षा करने लगे। आज राजघाट पर एक विशाल गोशाला का शिला-रोपण होनेवाला था, नगर की हाट-बाट और बीथियाँ मुसकुराती हुई जान पड़ती थीं। सड़क के दोनों पार्श्व में झणडे और झण्डियाँ लहरा रही थीं। गृहद्वार फूलों की माला पहिने स्वागत के लिए तैयार थे; क्योंकि आज उस स्वदेश -प्रेमी का शुभागमन है, जिसने अपना सर्वस्व देश के हित बलिदान कर दिया है।